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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका दांत समान हो जाने से सुबुद्धि मुनि का नाम पुष्पदन्त होगा। इसके लेखक का समय यदि अज्ञात है और यह कथानक कल्पित जान पड़ता है । अतएव उसमें कही गई बातों पर कोई जोर नहीं दिया जा सकता।
श्रवणबेलगोल के एक शिलालेख (नं. १०५) में पुष्पदन्त भूतबलि को स्पष्ट रूप से संघभेद-कर्ता अर्हद्वलिके शिष्य कहा है । यथा -
यः पुष्पदन्तेन च भूतबल्याख्येनापि शिष्यद्वितयेन रेजे। फलप्रदानाय जगज्जनानां प्राप्तोऽडकुराभ्यामिव कल्पभूजः ॥ २५ ॥ अर्हद्वलिस्संघचतुर्विधं स श्रीकोण्डकुन्दान्वयमूलसंघम् । कालस्वभावादिह जायमान-द्वेषेराल्पीकरणाय चक्रे ॥२६॥
यद्यपि यह लेख बहुत पीछे अर्थात शक सं. १३२० का है, तथापि संभवत: लेखक ने किसी आधार पर से ही इन्हें अर्हद्वलि के शिष्य कहा होगा । यदि ऐसा हो तो यह भी संभव है कि ये इन दोनों के दीक्षा-गुरु हों और धरसेनाचार्य ने जिस मुनि-सम्मेलन को पत्र भेजा था वह अर्हद्वालिका युग-प्रतिक्रमण के समय एकत्र किया हुआ समाज ही हो, और वहीं से उन्होंने अपने अत्यन्त कुशाग्रबुद्धि शिष्य पुष्पदन्त और भूतबलि को धरसेनाचार्य के पास भेजा हो । पट्टावली के अनुसार अर्हद्वलि के अन्तिम समय और पुष्पदन्त के प्रारम्भ समय में २१ + १९ = ४० वर्ष का अन्तर पड़ता है जिससे उनका समसामयिक होना असंभव नहीं है। केवल इतना ही है कि इस अवस्था में, लेख लिखते समय धरसेनाचार्य की आयु अपेक्षाकृत कम ही मानना पड़ेगी। पुष्पदन्त और जिनपालित -
प्रस्तुत ग्रन्थ में पुष्पदन्त का सम्पर्क एक और व्यक्ति से बतलाया गया है । अंकुलेश्वर में चातुर्मास समाप्त करके जब वे निकले तब उन्हें जिनपालित मिल गये और उनके साथ वे वनवास देश को चले गये । २ ('जिणवालियं दट्ठण पुप्फ यताइरियो वणवासविसयं गदो' पृष्ठ ७१) दट्ठण का साधारत: दृष्ट्वा अर्थात् देखकर अर्थ होता है । पर यहां पर दट्ठण का देखकर यही अर्थ ले लिया जाता है तो यह नहीं मालूम होता कि वहां
१ विचुधश्रीधर-श्रुतावतार (मा.जै.ग्रं. २१. सिद्धान्तसारादिसंग्रह, पृ. ३१६) २ विबुध श्रीधरकृत श्रुतावतार के अनुसार पुष्पदन्त और भूतबलिने अंकुलश्वर में ही षडंग आगम की रचना की। (तन्मुनिद्वयं अंकुलेसुरपुरे गत्वा मत्वा षडंगरचनां कृत्वा शास्त्रेषु लिखाप्य...)