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(५१०) १९७० - मोटर यान से देशाटन । इसी वर्ष ‘सुदंसणचरिउ' ओर सुदर्शनचरित रचनाओं का
प्रकाशन । १९७३ - पुत्र की कर्मस्थली बालाघाट में विश्राम और लेखन । 'जसहरचरिउ' के हिन्दी
___ अनुवाद का प्रकाशन । मोदीवंश दोहावली का प्रकाशन । मार्च - १३ को देहत्यागा
कुल परम्परा
मूल पुरुष
महारानी दुर्गावती के पश्चात् गढ़ मण्डला के राजाओं की एक शाखा चौगान दुर्ग से गोंडल देश का राज्य शासन चलाती रही। यह दुर्ग गाडरवारा से १० मील दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत पर निर्मित है। विक्रम की अठारहवीं शताब्दी की समाप्ति के समय गोंडल नरेश के कृपापात्र एवं विश्वासप्राप्त थे एक श्रेष्ठी- श्री मचल मोदी। बुंदेल राजा प्रतापसिंह ने जब चौगान दुर्ग को अपने आक्रमण से तहस-नहस कर दिया तब गोंडल नरेश चीचली आ गये। अपने साथ वे लाये श्री मचल मोदी को। इन्होंने अपनी कर्मठता, सद्व्यवहार और धर्मप्रेम से धन-सम्पत्ति, सम्मान और यश अर्जित किया। अपने धर्म प्रेम को मूर्तरूप देने हेतु उन्होंने एक जिन मन्दिर का निर्माण कराया। मोदी मचल मोदीवंश के मूलपुरुष हैं। ध्वज पुरुष -
मोदी मचल के द्वितीय पुत्र थे खेतसिंह जिनके ज्येष्ठ पुत्र हुये जवाहर । जिनदेव पर इनकी अगाध श्रद्धा थी। वे जैन समाज के कर्णधार रहे और प्रतिष्ठा पाई। अपनी धार्मिक आस्थाओं को अपने वंशजों में प्रतिष्ठापित करने के उद्देश्य से इन्होंने जिन-मंदिर की प्रतिष्ठा करवाकर उसमें पार्श्वनाथ की मनोरम प्रतिमा स्थापित कराई। धर्म पुरुष -
खेतसिंह के चौथे सुत थे बालचंद । जब ये केवल चार वर्ष के थे तब इनके अग्रज इन्हें लेकर गांगई आ गये थे। गांगई में भी गोंडल नरेशों की एक शाखा राज्य करती थी। बालचंद बुद्धि और कौशल के धनी थे। तथा अपने धर्म के प्रति इनकी विशेष लगन थी। मात्र १६ वर्ष की आयु में ये श्रद्धालुओं का एक संघ लेकर तीर्थयात्रा पर निकल पड़े तथा गिरनार, आबू, जयपुर, मक्सी, सिद्धवरकूट आदि तीर्थों की