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(५०९) १९४३ - षखंडागम ग्रंथ - ६ का प्रकाशन । बनारस में आयोजित ओरियेन्टल कान्फरेन्स
के प्राकृत और जैन अनुभाग की अध्यक्षता की तथा अपनी शोध और तर्क पूर्ण
निष्पत्तियों से स्त्री-मोक्ष की पात्रता प्रमाणित की। १९४४ - अमरावती से मॉरिस कालेज में स्थानान्तरण । होस्टल वार्डन का दायित्व मिलना।
प्रथम पौत्र की उपलब्धि। १९४५ - षट्खंडागम ग्रंथ - ७ का प्रकाशन । अमरावती के कालेज में पिता द्वारा रिक्त किये
गये पद पर पुत्र की गौरवमयी पदस्थापना। १९४७ - षट्खंडागम ग्रंथ - ८ का प्रकाशन । १९४८ - नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा सर्वोच्च शोध-उपाधि डी.लिट् से अलंकृत। जन्मदात्री
मां और प्राणप्रिय पौत्र का बिछोह । १९४९ - षट्खंडागम ग्रंथ - ९ का प्रकाशन । १९५२ - तत्वसमुच्चय कृति का प्रकाशन । १९५३ - स्नेही पिता का अवसान । १९५४ - षखंडागम ग्रंथ - १० का प्रकाशन । शासकीय सेवा में प्राचार्य पद से निवृत्ति। १९५५ - षट्खंडागम ग्रंथ - ११ का प्रकाशन । बिहार शासन से निमंत्रण पाकर नवनिर्मित
“वैशाली इंस्टीट्यूट ऑफ संस्कृत, पालि प्राकृत एण्ड जैनोलॉजी" के डायरेक्टर
का पद ग्रहण । षट्खंडागम ग्रंथ - १२ और १३ का प्रकाशन । १९५७ - षट्खंडागम ग्रंथ - १४ का प्रकाशन । मुजफ्फरपुर में प्राकृत इंस्टीट्यूट का समारंभ।
षट्खंडागम ग्रंथ- १५ का प्रकाशन । १९५८ - षट्खंडागम - अंतिम ग्रंथ - १६ का प्रकाशन । १९६१ - वैशाली इंस्टीट्यूट से त्यागपत्र देकर जबलपुर विश्वविद्यालय के निमंत्रण पर संस्कृत,
पालि, प्राकृत विभाग के प्रोफेसर और संस्थापक अध्यक्ष का पदभार ग्रहण। १९६३ - ‘मयणपराजय' का प्रकाशन । भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान ‘कृति का . प्रकाशन'। १९६६ - ‘सुगंध दशमी कथा' रचना का प्रकाशन । १९६९ - विश्वविद्यालय की सेवा से निवृत्ति । पुत्र की कर्मस्थली धार में विश्राम ।