________________
भवि भवि दंसणु मलरहिउ भवि भवि करउं समाहि । भवि भवि रिसि गुरू हो इ महु णिहयमणुभववाहि ||
षट्.६ | महाबन्ध |
(कर्मप्रकृतिप्राभृत बनाम सत्कर्म) • सत्कर्म परिचय • सतकम्म पंजिका • कर्मप्रकृतिप्राभृत परिचय • धवलाग्रंथ समाप्ति सूचना
(षट्खंडागम पुस्तक क्र. १५, १६ की प्रस्तावना)