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________________ ४५० षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका वर्गणाद्रव्यसमुदाहार - इस अनुयोगद्वार के भी चौदह अवान्तर अधिकार हैं जिनके नाम ये हैं - वर्गणाप्ररूपणा, वर्गणानिरूपणा, वर्गणाध्रुवाध्रुवानुगम, वर्गणासान्तर निरन्तरासुगम, वर्गणाओजयुग्मानुगम, वर्गणाक्षेत्रानुगम, वर्गणास्पर्शनानुगम, वर्गणाकालानुगम, वर्गणाअन्तरानुगम, वर्गणाभावानुगम, वर्गणाउपनयनानुगम, वर्गणापरिमाणनुगम, वर्गणाभागाभागानुगम औरवर्गणा अल्पबहुत्व । वर्गणाप्ररूपणा - इसके द्वारा तेईस प्रकार की वर्गणाओं का विचार किया है। ये तेईस प्रकार की वर्गणाऐं ये हैं - एक प्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्य वर्गणा, संख्यातप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्य वर्गणा, असंख्यात प्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा, अनन्तप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा, आहारवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, तैजसशरीरद्रव्यवर्गणा, अग्रहणवर्गणा भाषाद्रव्यवर्गणा,अग्रहणवर्गणा, मनोद्रव्यवर्गणा, अग्रहणावर्गणा, कार्मणाद्रव्यवर्गणा, ध्रुवस्कन्धवर्गणा, सान्तरनिरन्तरवर्गणा, ध्रुवशून्यवर्गणा, प्रत्येकशरीरद्रव्यवर्गणा, ध्रुवशून्यद्रव्यवर्गणा, बादरनिगोदद्रव्यवर्गणा, ध्रुवशून्यद्रव्यवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा, ध्रुव शून्यवर्गणा और महास्कन्धवर्गणा । एक परमाणु की एकप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा संज्ञा है । द्विप्रदेशिक से लेकर उत्कृष्ट संख्यातप्रदेशिक परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणा तक की सब वर्गणाओं की संख्यात प्रदेशिकपरमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा संज्ञा है । जघन्य असंख्यातप्रदेशिक से लेकर उत्कृष्ट असंख्याप्रदेशिक परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणाओं की असंख्यात प्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्य वर्गणासंज्ञा है । आहारवर्गणा से पूर्व तक की अनन्तप्रदेशी और अनन्तानन्तप्रदेशी जितनी वर्गणाऐं हैं उनकी यहाँ अनन्तप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा संज्ञा दी है । इन्हीं वर्गणाओं में परीत और अपरीतप्रदेशी परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणाऐं भी सम्मिलित हैं । औदारिकशरीर, वैक्रियकशरीर और आहारकशरीर के योग्य वर्गणाओं की आहारवर्गणासंज्ञा है। इसी प्रकार आगे भी अपने अपने कार्य के अनुसार उन-उन वर्गणाओं की संज्ञा जाननी चाहिए । यहाँ जो चार ध्रुवशून्य वर्गणाऐं कही हैं वे वस्तुतः शून्य रूप हैं । केवल पिछली वर्गणा और अगली वर्गणा के मध्य के शून्य रूप अन्तराल का परिज्ञान कराने के लिए यह संज्ञा दी गई है। यहां अन्त में आई हुई प्रत्येक शरीरवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा और महास्कन्ध वर्गणा ये चार ऐसी वर्गणाऐं हैं जिनके स्वरूप के विषय में कुछ अलग से प्रकाश डालना आवश्यक है, अत: यहां इस विषय में लिखा जाता है। एक जीव के एक
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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