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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४४९ २.बन्धक बन्धक का विशेष विचारखुद्दाबन्ध में ग्यारह अनुयोगद्वारों का आलम्बन लेकर पहले कर आये हैं, इसलिए यहाँ इस विषय की सूचनामात्र दी गई है। ३. बन्धनीय जीव से पृथग्भूत जो कर्म और नोकर्म स्कन्ध हैं उनकी बन्धनीय संज्ञा है । वे पुद्गल द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव के अनुसार वेदनयोग्य होते हैं । ऐसा होते हुए भी वे स्कन्ध पर्याय से परिणत होकर ही वेदनयोग्य होते हैं ऐसा नियम है। उसमें भी सभी पुद्गलस्कन्ध वेदनयोग्य नहीं होते, किन्तु तेईस प्रकार की वर्गणाओं में जो ग्रहणप्रायोग्य वर्गणाऐं हैं उनके कर्म और नोकर्मरूप परिणत होने पर ही वे वेदनयोग्य होते हैं, अत: यहाँ वर्गणाओं का अनुगम करते हुए उनका इन आठ अनुयोगद्वारों का अवलम्बन लेकर विचार किया गया है । वे आठ अनुयोगद्वार ये हैं- वर्गणा, वर्गणाद्रव्यसमुदाहार, अनन्तरोपनिधा, परम्परोनिधा, अवहार, यवमध्य, पदमीमांसा और अल्पबहुत्व । - वर्गणा - वर्गणा के दो भेद हैं - आभ्यन्तर वर्गणा और बाह्म वर्गणा । आभ्यन्तरवर्गणा दो प्रकार की है- एकश्रेणिवर्गणा और नानाश्रेणिवर्गणा । उनमें से एक श्रेणिवर्गणा का सर्वप्रथम सोलह अनुयोगद्वारों का आलम्बन लेकर विचार किया गया है। वे सोलह अनुयोगद्वार ये हैं - वर्गणानिक्षेप, वर्गणानयविभाषणता, वर्गणाप्ररूपणा वर्गणानिरूपणा, वर्गणाध्रु, वा वानुगम, वर्गणासान्तरनिरन्तरानुगम, वर्गणाओजयुग्मानुगम, वर्गणाक्षेत्रानुगम, वर्गणास्पर्शनानुगम, वर्गणाकालानुगम, वर्गणाअन्तरानुगम, वर्गणाभावनुगम, वर्गणाउपनयनानुगम, वर्गणापरिमाणानुगम, वर्गणाभागाभागानुगमऔर वर्गणा अल्पबहुत्वानुगम। यहाँ वर्गणा निक्षेप के छह भेद करके उनमें से कौन निक्षेप किस नय का विषय है यह बतलाकर इस प्रकरण को समाप्त किया गया है । वर्गणा के सोलह अनुयोगद्वारों में से केवल दो का ही विचार कर वर्गणा द्रव्य समुदाहार का अवतार क्यों किया गया है यह प्रश्न उठाकर वीरसेन स्वामी ने उसका यह समाधान किया है कि वर्गणा प्ररूपणा अधिकार केवल वर्गणाओं की एक श्रेणि का कथन करता है किन्तु वर्गणाद्रव्यसमुदाहार वर्गणाओं की एक श्रेणि और नानाश्रेणि का साङ्गोपाङ्ग विचार करता है । अतः यहाँ वर्गणा के शेष चौदह अधिकारों का कथन न करके वर्गणा द्रव्य समुदाहार का कथन प्रारम्भ किया है।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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