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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
और अल्पबहुत्व इन आठ अधिकारों के द्वारा ओघ और आदेश से विवेचन किया है । यथा-- ओघ से छहों कर्म हैं । आदेश से नारकियों और देवों में प्रयोगकर्म, समवदानकर्म
और क्रियाकर्म हैं। शेषनहीं हैं । तिर्यश्चों में ईर्यापथकर्म और तपःकर्म नहीं हैं, शेष चार हैं। मनुष्यों में छहों कर्म हैं। कारण स्पष्ट है । इसी प्रकार शेष मार्गणाओं में घटित कर लेना चाहिए । तात्पर्य इतना है कि प्रयोगकर्म तेरहवें गुणस्थान तक सब जीवों के उपलब्ध होता है, क्योंकि यथासम्भव मन, वचन और काय की प्रवृत्ति अयोगी और सिद्ध जीवों को छोड़कर सर्वत्र पायी जाती है । समवदानकर्म सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान तक सब जीवों के होता है, क्योंकि यहां तक किसी के आठ. किसी के सात और किसी के छह प्रकार के कर्मों का निरन्तर बन्ध होता रहता है । अध:कर्म केवल औदारिकशरीरके आलम्बन से होता है, इसलिए इसका सद्भाव मनुष्य तिर्यश्चों के ही होता है। ईर्यापथकर्म उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय और सयोगिकेवली के होता है, इसलिए यह मनुष्यों के बतलाया गया है । क्रियाकर्म अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से होता है, अत: इसका सद्भाव चारों गतियों में कहा गया है। तपःकर्म प्रमत्तसंयत गुणस्थान से होता है, अत: इसके स्वामी मनुष्य ही हैं। यह चार गति का विवेचन है । अन्य मार्गणाओं में इस विधि को जानकर घटित कर लेना चाहिए । तथा इसी विधि के अनुसार ओघ और आदेश से इनकी संख्या आदि भी जान लेनी चाहिए। इतनी विशेषता है कि संख्या आदि प्ररूपणाओं का विचार करते समय इन छह कर्मों की द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थता की अपेक्षा कथन किया है, इसलिए यहां इनकी द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थता का ज्ञान करा देना आवश्यक है।
प्रयोगकर्म, तपःकर्म और क्रियाकर्म में उस उस कर्मवाले जीवों की द्रव्यार्थता संज्ञा है और उन जीवों के प्रदेशों की प्रदेशार्थता संज्ञा है । समवदानकर्मऔर ईर्यापथकर्म में उस उस कर्मवाले जीवों की द्रव्यार्थता संज्ञा है और उन जीवों से सम्बन्ध को प्राप्त हुए कर्मपरमाणुओं की प्रदेशार्थता संज्ञा है । अध:कर्म में औदारिकशरीर के नोकर्मस्कन्धों की द्रव्यार्थता संज्ञा है और औदारिक शरीर के उन नोकर्मस्कन्धों के परमाणुओं की प्रदेशार्थता संज्ञा है । इसलिए संख्या आदि का विचार इन कर्मों की द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थता की संख्या आदि को समझकर करना चाहिए। ३. प्रकृति अनुयोगद्वार
प्रकृति, शील और स्वभाव इनका एकही अर्थ है । उसका जिस अनुयोगद्वार में विवेचन हो उसका नाम प्रकृति अनुयोगद्वार है । इसका विचार प्रकृतिनिक्षेप आदि सोलह