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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
४२३ है । ऐसा करते हुए नयभेद से ये भंग आये हैं - नैगम और व्यवहार नय की अपेक्षा ज्ञानावरणादि आठों कर्मों की वेदना का कथंचित् एक जीव स्वामी है, कथंचित् नोजीव स्वामी है, कथंचित् नाना जीव स्वामी हैं, कथंचित् नाना नोजीव स्वामी हैं, कथंचित् एक जीव और एक नोजीव स्वामी है, कथंचित् एक जीव और नाना नोजीव स्वामी हैं, कथंचित् नाना जीव और एक नोजीव स्वामी हैं तथा कथंचित् नाना जीव और नाना नोजीव स्वामी हैं। यहाँ पर जीव और नोजीव पद की व्याख्या करते हुए वीरसेन स्वामी ने बतलाया है कि जो अनन्तानन्त विस्रसोपचय सहित कर्मपुद्गल स्कन्ध उपलब्ध होते हैं। वे जीव से पृथक् न पाये जाने के कारण जीवपद से लिए गये हैं। तथा वे ही अनन्तानन्त विस्रसोपचयसहित कर्मपुद्गल स्कन्ध ही प्राणधारण शक्ति से रहित होने के कारण अथवा ज्ञान-दर्शन शक्ति से रहित होने के कारण नोजीव कहलाते हैं। अथवा उनसे सम्बन्ध रखने के कारण जीव को भी नोजीव कहते हैं । संग्रह नय की अपेक्षा इन ज्ञानावरणादि आठों कर्मों की वेदना का कथंचित एक जीव स्वामी है और कथंचित् नाना जीव स्वामी हैं। तथा शब्द और ऋतुसूत्रनय की अपेक्षा इन ज्ञानावरणादि वेदना का एक जीव स्वामी है । यहाँ इन नयों की अपेक्षा एक जीव को स्वामी कहने का कारण यह है कि ये नय बहुवचन को स्वीकार नहीं करते। १०. वेदनावेदनाविधान
इस अनुयोद्वार में सर्वप्रथम नैगमन की अपेक्षा जीव, प्रकृति और समय इनके एकत्व और अनेकत्व का आश्रय करके ज्ञानावरण वेदना के एकसंयोगी, द्विसंयोगी और त्रिसंयोगी भंगों का प्ररूपण किया गया है । यथा - ज्ञानावरणीय वेदना कथंचित् बध्यमान वेदना है, कथंचित् उदीर्ण वेदना है, कथंचित् उपशान्त वेदना है,कथंचित् बध्यमान वेदनाएँ हैं, कथंचित् उदीर्ण वेदनाएँ हैं, कथंचित उपशान्त वेदनाएं हैं, इत्यादि । यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि इन भंगों का विवेचन करते हुए वीरसेन स्वामी ने विवक्षाभेद से इन भंगों के अन्य अनेक अवान्तर भंगों का भी निर्देश किया है । नैगमनय की अपेक्षा शेष सात कर्मों के भंग ज्ञानावरण के ही समान हैं। आगे व्यवहारनय और संग्रहनय की अपेक्षा यथासम्भव इन भंगों का क्रम से विवेचन करके ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा आठों कर्मों के फल प्राप्त विपाक को ही वेदना बतलाया है । शब्दनय का विषय इन सब दृष्टियों से अवक्तव्य है, यह स्पष्ट ही
है।
११. वेदनागतिविधान
इस अनुयोगद्वार में ज्ञानावरणादि कर्मों की वेदना अपेक्षाभेद से क्या स्थित है, क्या अस्थित है या क्या स्थितास्थित है, इस बात का विचार किया गया है । पहले नैगम,