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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४११ किया गया है। प्रकरणवश यहाँ भी प्रारम्भ में क्षेत्र के विधान समान जघन्य और उत्कृष्ट के विषय में नामादि रूप निक्षेपविधि की योजना की गयी है । तत्पश्चात् ज्ञानावरणादि कर्मों सम्बन्धी काल की अपेक्षा होने वाली उत्कृष्ट -अनुत्कृष्ट एवं जघन्य-अजघन्य वेदनाओं के स्वामियों की प्ररूपणा की गयी है । उदाहरणार्थ, ज्ञानावरण की उत्कृष्ट वेदना के स्वामी का कथन करते हुए यह बतलाया है कि जो संज्ञी पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हो चुका है, साकार उपयोग से युक्त होकर श्रुतोपयोग से सहित है, जागृत है, तथा उत्कृष्ट स्थितिबन्ध के योग्य संक्लेश स्थानों से अथवा कुछ मध्यम जाति के संक्लेश परिणामों से सहित है, उसके ज्ञानावरण कर्म की काल की उत्कृष्ट वेदना होती है। उपर्यक्त विशेषताओं से संयुक्त यह जीव कर्मभूमिज (१५ कर्म भूमियों में उत्पन्न) ही होना चाहिये, भोग भूमिज नहीं, कारण कि भोगभूमियों में उत्पन्न जीवों के उत्कृष्ट स्थिति का बन्ध सम्भव नहीं है । इसके अतिरिक्त वह चाहे अकर्मभूमिज (देव-नारकी) हो, चाहे कर्मभूमिप्रतिभागज (स्वयंप्रभ पर्वत के बाह्य भाग में उत्पन्न) हो, इसकी कोई विशेषता यहाँ अभीष्ट नहीं है । इसी प्रकार वह संख्यातवर्षायुष्क (अढाई द्वीप-समुद्रों तथा कर्मभूमि प्रतिभाग में उत्पन्न) और असंख्यातवर्षायुक्त (देव-नारकी) इनमें से कोई भी हो सकता है । वह देव होना चाहिये, मनुष्य होना चाहिये, तिर्यंच होना चाहिये अथवा नारकी होना चाहिये, इस प्रकार की गतिजन्य विशेषता के साथ ही यहाँ वेदजनित विशेषता की भी कोई अपेक्षा नहीं की गयी है। वह जलचर भी हो सकता है, थलचर भी हो सकता है, और नभचर भी हो सकता है, इसकी भी विशेषता यहाँ नहीं ग्रहण की गयी। इस उत्कृष्ट वेदना से भिन्न वेदना अनुत्कृष्ट बतलायी गई है । इसी प्रकार से यथासम्भव शेष कर्मों की कभी काल की अपेक्षा उत्कृष्ट- अनुत्कृष्ट वेदनाओं की विशदता से प्ररूपणा की गयी है । आयु कर्म की कालत: उत्कृष्ट वेदना का निरूपण करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उत्कृष्ट देवायु के बन्धक मनुष्य सम्यग्दृष्टि ही होते हैं, किन्तु उत्कृष्ट नारकायु के बन्धक मनुष्य पर्याप्त मिथ्यादृष्टि के साथ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंच मिथ्यादृष्टि भी होते हैं । देवों की उत्कृष्ट आयु का बन्ध १५ कर्मभूमियों में ही होता है, कर्मभूमिप्रतिभाग और भोग भूमियों में उत्पन्न जीवों के उसका बन्ध सम्भव नहीं है । उत्कृष्ट नारकायुका बन्ध १५ कर्मभूमियों के साथ कर्मभूमिप्रतिभाग में भी उत्पन्न जीवों के होता है, भोगभूमियों में उसका बन्ध नहीं होता । इस उत्कृष्ट देवायु और नारकायु के बन्धक संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य व तिर्यंच उसके बन्धक नहीं होते । तीनों वेदों में से किसी भी वेद के साथ उत्कृष्ट आयु का बन्ध हो सकता है, उसका किसी वेद विशेष के साथ विरोध सम्भव नहीं है,
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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