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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका इनके अतिरिक्त, जहां तक हमें ज्ञात है, सिद्धान्त ग्रंथों की प्रतियाँ सोलापुर, झालरापाटन, व्यावर, बम्बई, इन्दौर, अजमेर, दिल्ली और सिवनी में भी है । इनमें से केवल बम्बई दि. जैन सरस्वती भवन की प्रति का परिचय हमारी प्रश्नावली के उत्तर में वहां के मैनेजर श्रीयुत पं. रामप्रसादजी शास्त्री ने भेजने की कृपा की, जिससे ज्ञात हुआ कि वह प्रति आरा की उपर्युक्त नं. ९ की प्रति पर से पं. रोशनलाल द्वारा सं. १९८९ में लिखी गई है, और उसी पर से झालरा-पाटन ऐलक पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भवन के लिए प्रति कराई गई है। सागर की सत्तर्कसुधातरंगिणी पाठशाला की प्रति का जो परिचय वहां के प्रधानाध्यापक पं. दयाचंदजी शास्त्री ने भेजने की कृपा की है, उससे ज्ञात हुआ है कि सिवनी की प्रति सागर की प्रति पर से ही की गई है। शेष प्रतियों का हमें हमारी प्रश्नावली के उत्तर में कोई परिचय भी नहीं मिल सका। इससे स्पष्ट है कि स्वयं सीताराम शास्त्री के हाथ की लिखी हुई जो तीन प्रतियां कांरजा, आरा और सागर की हैं, उनमें से पूर्व दो का तो हमने सीधा उपयोग किया है और सागर की प्रति का उसकी अमरावती वाली प्रतिलिपि पर से लाभ लिया है। धवल सिद्धान्त की प्रतियों की पूर्वोक्त परम्परा का निदर्शक वंशवृक्ष १. ताड़पत्र प्रति (मूडविद्री) २. कनाड़ी (मूडविद्री) ४. कनाड़ी (सहारनपुर) ३. नागरी (मूडविद्री) १९७३ १९७३ १९७३ ५. नागरी (सहारनुपर) १९८१ ६. प्रति (पं.सीताराम) १९८१ ९. प्रति (आरा) ७. प्रति (सागर) १९८३ १०. प्रति (कारंजा) १९८१ ८. प्रति अमरावती . १९८५ प्रस्तुत संस्करण (१९९६)
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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