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क्या षट्खंडागम जीवट्ठाण की सत्प्ररूपणा के सूत्र ९३ में 'संयत' पद अपेक्षित नहीं है ?
___षखंडागम जीवठ्ठाण सत्प्ररूपणा के सूत्र ९३ का जो पाठ उपलब्ध प्रतियों में पाया गया था उसमें संयत पद नहीं था। किन्तु उसका सम्पादन करते समय सम्पादकों को यह प्रतीत हुआ कि वहां 'संयत' पद होना अवश्य चाहिये और इसीलिये उन्होंने फुटनोट में सूचित किया है कि "अत्र ‘संजद' इति पाठशेष: प्रतिभाति ।" तथा हिन्दु अनुवाद में संयत पद ग्रहण भी किया है। इस पर कुछ पाठकों ने शंका भी उत्पन्न की थी, जिसका समाधान पुस्तक ३ की प्रस्तावना के पृष्ठ २८ पर किया गया है । इस समाधान में ध्यान देने योग्य बातें ये हैं कि एक तो उक्त सूत्र की धवला टीका में जो शंका-समाधान किया गया है वह मनुष्यनी के चौदहों गुणस्थान ग्रहण करके ही किया गया है । दूसरे, सत्प्ररूपणा के आलापाधिकार में भी धवलाकार ने सामान्य मनुष्यनी व पर्याप्त मनुष्यनी के अलग-अलग चौदहों गुणस्थान प्ररूपित किये हैं। तीसरे द्रव्यप्रमाणादि प्ररूपणाओं में भी सर्वत्र मनुष्यनी के चौदहों गुणस्थान कहे गये हैं। और चौथे गोम्मटसार जीवकाण्ड में भी मनुष्यनी के चौदहों गणस्थानों की ही परम्परा पाई जाती है, पांच गुणस्थानों की नहीं। इन प्रमाणों पर से स्पष्ट है कि यदि उक्त सूत्र में संयत पद ग्रहण न किया जाय तो शास्त्र में एक बड़ी भारी विषमता उत्पन्न होती है । अतएव षट्खंडागम के सम्पादन में जो वहां संयत पद की सूचना करके भाषान्तर किया गया वह सर्वथा उचित और आवश्यक था ।
किन्त मनुष्यनी के कहीं भी केवल पाँच गुणस्थानों का उल्लेख न पाकर कुछ लोग इसी सूत्र को स्त्रियों के केवल पांच गुणस्थानों की योग्यता का मूलाधार बनाना चाहते हैं। परन्तु इसके लिये उन्हें उपर्युक्त चार बातों का उचित समाधान करना आवश्यक है जो वे अभी तक नहीं कर सके । एक हेतु यह दिया जाता है कि प्रस्तुत सूत्र में मनुष्यनी का अर्थ द्रव्य स्त्री स्वीकार करना चाहिये और द्रव्यप्रमाणादि में जहां मनुष्यनी के चौदहों गुणस्थान बतलाये गये हैं वहां भाव स्त्री अर्थ लेना चाहिये । किन्तु ऐसा करने पर शास्त्र में यह विषमता उत्पन्न होगी कि उक्त प्रकरण में जिन जीवों के गुणस्थान बतलाये, उनका द्रव्यप्रमाण नहीं बतलाया गया, और जिनका द्रव्यप्रमाण बतलाया है उनके सब गुणस्थानों का सत्त्व ही प्रतिपादित नहीं किया, तथा धवलाकार ने वह शंका-समाधान अप्रकृत रूप से किया एवं आलापाधिकार भी निराधार रूप से लिखा । पर धवलाकार ने स्वयं अन्यत्र यह स्पष्ट कर