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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ३६४ जीव के परिणाम को विशद्धि और जघन्यस्थिति से ऊपर-ऊपर की स्थितियों को बांधने वाले जीव के परिणाम को संक्लेश कहा है, उसे धवलाकार ठीक नहीं समझते, क्योंकि वैसा मानने पर तो जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिबंध योग्य परिणामों को छोड़कर शेष मध्यम स्थितियों सम्बन्धी समस्त परिणाम संक्लेश और विशुद्धि दोनों कहे जा सकते हैं, और लक्षणभेद के बिना एक ही परिणाम को दो भिन्न रूप मानने में विरोध आता है। उन्होंने कषायवृद्धि को भी संक्लेश का लक्षण मानना उचित नहीं समझा, क्योंकि विशुद्धिकाल में भी तो कषायवृद्धि होना संभव है और उसी से सातावेदनीय आदि कर्मो का भुजाकार बंध होता है । ध्यान देने योग्य बात एक और यह है कि छठवें गुणस्थान तक जिस असातावेदनीय कर्म का बंध होता है उसकी जघन्य स्थिति एक सागरोपम के लगभग ३/७ भागप्रमाण होती है और जो सातावेदनीय कर्म सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान के अन्तिम समय में बांधा जाता है उसका भी जघन्य स्थितिबंध १२ मुहूर्त से कम नहीं होता । यद्यपि दर्शनावरणीय का बंध तीस कोड़ाकोड़ी सागर से घटकर अन्तर्मुहूर्त मात्र जघन्य स्थिति पर आ जाता है, पर शुभबंध होने के कारण सातावेदनीय कर्म की विशद्धि के द्वारा भी उतनी अपवर्तना नहीं हो पाती। __(देखो सू.९ टीका) सूत्रों में प्रकृति और स्थिति बंध का विचार तो खूब हुआ, पर प्रदेश और अनुभाव बंध का कहीं परिचय नहीं कराया गया ? इसका समाधान धवलाकार ने जघन्यस्थिति चूलिका के अन्त में किया है कि उक्त प्रकृति और स्थितिबंध की व्यवस्था से ही प्रदेश व अनुभाग बंध की व्यवस्था निकल आती है जिसे उन्होंने वहां समझा भी दिया है । उसी प्रकार उन्होंने सत्व, उदय और उदारीणाका स्वरूप भी बंधप्ररूपणा के आधार से समझा दिया है। इस चूलिका में ४३ सूत्र हैं और यह विषय उत्कृष्टस्थिति चूलिका के समान अर्धच्छेद प्रकरण से लिया गया है। ८. सम्यक्त्वोत्पत्ति चूलिका इस चूलिका को इस समस्त ग्रंथ का प्राण कहा जाय तो अनुपयुक्त न होगा । यहां सूत्र केवल १६ ही हैं पर उनमें संक्षेपरूप से यह महत्वपूर्ण समस्त विषय बड़ी ही सावधानी से सूचित कर दिया गया है । यह विषय चार अधिकारों में विभाजित है । पहले सात सूत्रों में यह बतलाया गया है कि कोई भी पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीव अपने परिणामों
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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