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________________ ३०८ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २. मध्यम-अनन्तानन्त ................. न न म ३. उत्कृष्ट-अनन्तानन्त ...................... न न उ संख्यात का संख्यात्मक परिमाण - सभी जैन ग्रंथों के अनुसार जघन्य संख्यात २ हैं, क्योंकि, उन ग्रंथों के मत से भिन्नता की बोधक यही सबसे छोटी संख्या है । एकत्व को संख्यात में सम्मिलित नहीं किया । मध्यम संख्यात में २ और उत्कृष्ट संख्यात के बीच की समस्त गणना आ जाती है, तथा उत्कृष्ट-संख्यात जघन्य-परीतासंख्यात से पूर्ववर्ती अर्थात् एक कम गणना का नाम है । अर्थात् स उ = अ प ज - १। अप ज को त्रिलोकसार में निम्न प्रकार से समझाया गया है । . . जैन भूगोलानुसार यह विश्व, अर्थात् मध्यलोक, भूमि और जल के क्रमवार बलयों से बना हुआ है । उनकी सीमाएं उत्तरोत्तर बढ़ती हुई त्रिज्याओं वाले समकेन्द्रीय वृत्तरूप हैं। किसी भी भूमि या जलमय एक वलय का विस्तार उससे पूर्ववर्ती वलय के विस्तार से दुगुना है । केन्द्रवर्ती वृत्त (सबसे प्रथम बीच का वृत्त) एक लाख (१,००,०००) योजन व्यास वाला है, और जम्बूदीप कहलाता है। __ अब बेलन के आकार के चार ऐसे गड्ढों की कल्पना कीजिये और जो प्रत्येक एक लाख योजन व्यास वाले और एक हजार योजन गहरे हों। इन्हें अ, ब,, स, और ड, कहिये। अब कल्पना कीजिये कि अ, सरसों के बीजों से पूरा भर दिया गया और फिर भी उस पर और सरसों डाले गये जब तक कि उसकी शिखा शंकु के आकार की हो जाय, जिसमें सबसे ऊपर एक सरसों का बीज रहे । इस प्रक्रिया के लिये जितने सरसों के बीजों की आवश्यकता होगी उनकी संख्या इस प्रकार है - बेलनाकार गड्ढे के लिये - १९७२१२०९२९९९६८.१० ३१ । ऊपर शंकार शिखा के लिये - १७९९२००८४५४५१६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६ । संपूर्ण सरसों का प्रमाण - १९९७११२९३८४५१३१६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६ इस पूर्वोक्त प्रक्रिया को हम बेलनाकार गड्डे का सरसों के बीजों से 'शिखायुक्त पूरण' कहेंगे । अब उपर्युक्त शिखायुक्त पूरित गड्ढे में से उन बीजों को निकालिये और जम्बूद्वीप से प्रारंभ करके प्रत्येक द्वीप और समुद्र के वलयों में एक-एक बीज डालिये । चंकि बीजों की संख्या सम है, इसलिये अन्तिम बीज समुदवलय पर पड़ेगा। अब एक बीज ब, नामक गड्ढे में डाल दीजिये, यह बतलाने के लिये कि उक्त प्रक्रिया एक बार हो गई। १ देखो त्रिलोकसार, गाथा ३५.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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