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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
पूर्वोक्त इन तीनों भेदों में से प्रत्येक के पुन: तीन-तीन प्रभेद होते हैं, जैसे, जघन्य (सबसे छोटा), मध्यम (बीच का) और उत्कृष्ट (सबसे बड़ा)। इस प्रकार असंख्यात के भीतर निम्न संख्याएं प्रविष्ट हो जाती हैं -
१. जघन्य-परीत-असंख्यात ............ अपज २. मध्यम-परीत-असंख्यात
अपम ३. उत्कृष्ट-परीत-असंख्यात ......... १. जघन्य-युक्त-असंख्यात २. मध्यम-युक्त-असंख्यात ... ३. उत्कृष्ट-युक्त-असंख्यात ........ अ यु उ १. जघन्य-असंख्यातासंख्यात
अ अज २. मध्यम-असंख्यातासंख्यात .................
३. उत्कृष्ट-असंख्यातासंख्यात ... ....... अ अ उ (३) अनन्त - जिसका संकेत हम न मान चुके हैं। उसके तीन भेद हैं -
(अ) परीत-अनन्त (प्रथम श्रेणी का अनन्त) जिसका संकेत हम न प मान लेते हैं। (ब) युक्त-अनन्त (बीच का अनन्त) जिसका संकेत हम न यु मान लेते हैं। (स) अनन्तानन्त (नि:सीम अनन्त) जिसका संकेत हम न न मान लेते हैं।
असंख्यात के समान इन तीनों भेदों के भी प्रत्येक के पुन: तीन-तीन प्रभेद होते हैं। जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । अत: अनन्त के भेदों में हमें निम्न संख्याएं प्राप्त होती हैं -
१. जघन्य-परीतानन्त ........................ २. मध्यम-परीतानन्त. ३. उत्कृष्ट-परीतानन्त १. जघन्य-युक्तानन्त ...... २. मध्यम-युक्तानन्त ३. उत्कृष्ट-युक्तानन्त
.................. १. जधन्य-अनन्तानन्त ...............
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