SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०७ .............. 50 5 अप उ अयज 64 64 अ अम षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका पूर्वोक्त इन तीनों भेदों में से प्रत्येक के पुन: तीन-तीन प्रभेद होते हैं, जैसे, जघन्य (सबसे छोटा), मध्यम (बीच का) और उत्कृष्ट (सबसे बड़ा)। इस प्रकार असंख्यात के भीतर निम्न संख्याएं प्रविष्ट हो जाती हैं - १. जघन्य-परीत-असंख्यात ............ अपज २. मध्यम-परीत-असंख्यात अपम ३. उत्कृष्ट-परीत-असंख्यात ......... १. जघन्य-युक्त-असंख्यात २. मध्यम-युक्त-असंख्यात ... ३. उत्कृष्ट-युक्त-असंख्यात ........ अ यु उ १. जघन्य-असंख्यातासंख्यात अ अज २. मध्यम-असंख्यातासंख्यात ................. ३. उत्कृष्ट-असंख्यातासंख्यात ... ....... अ अ उ (३) अनन्त - जिसका संकेत हम न मान चुके हैं। उसके तीन भेद हैं - (अ) परीत-अनन्त (प्रथम श्रेणी का अनन्त) जिसका संकेत हम न प मान लेते हैं। (ब) युक्त-अनन्त (बीच का अनन्त) जिसका संकेत हम न यु मान लेते हैं। (स) अनन्तानन्त (नि:सीम अनन्त) जिसका संकेत हम न न मान लेते हैं। असंख्यात के समान इन तीनों भेदों के भी प्रत्येक के पुन: तीन-तीन प्रभेद होते हैं। जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । अत: अनन्त के भेदों में हमें निम्न संख्याएं प्राप्त होती हैं - १. जघन्य-परीतानन्त ........................ २. मध्यम-परीतानन्त. ३. उत्कृष्ट-परीतानन्त १. जघन्य-युक्तानन्त ...... २. मध्यम-युक्तानन्त ३. उत्कृष्ट-युक्तानन्त .................. १. जधन्य-अनन्तानन्त ............... न पम ......................... न पम 4 न प उ . 4 न युज 4 ................ ) न यु उ न न ज 4
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy