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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३०३ (१) दाशमिक-क्रम (Place-Value notation) - जिसमें दशमानका उपयोग किया गया । इससंबंध में यह बात उल्लेखनीय है कि दशमान के आधारपर १०१४० जैसी बड़ी संख्याओं को व्यक्त करने वाले नाम कल्पित किये गये ।
(२) घातांक नियम - (Law of indices वर्ग-संवर्ग) - का उपयोग बड़ी संख्याओं को सूक्ष्मता से व्यक्त करने के लिये किया गया। जैसे -
(अ) २२ - ४ (ब) (२१) = ४७ = २५६ (स) (२२)२२१ {(२)} = २५६२५६
जिसको २ का तृतीय वर्गित-संवर्गित कहा है । यह संख्या समस्त विश्व (Universe) के विघुत्वकणों (Protons and electrons) की संख्या से बड़ी है।
(३) लघुरिक्थ (अर्धच्छेद) अथवा लघुरिक्थ के लघुरिक्थ (अर्धच्छेदशलाका) का उपयोग बड़ी संख्याओं के विचार को छोटी संख्याओं केविचार में उतारने के लिये किया गया है। जैसे -
(अ) लरि , २२ : २ (ब) लरि, लरि , ४० - ३ (स) लरि, लरि, २५६२५६ - ११
इससे कोई आश्चर्य नहीं कि आज भी संख्याओं को व्यक्त करने के लिये हम उपर्युक्त तीन प्रकार का उपयोग करते हैं। दाशमिक क्रम समस्त देशों की साधारण सम्पत्ति बन गई है । जहां बड़ी संख्याओं का गणित करना पड़ता है, वहां लघुरिक्थों का उपयोग किया जाता है । आधुनिक पदार्थ विज्ञान में परिमाणों (magnitudes) को व्यक्त करने के लिये घातांक नियमों का उपयोग सर्वसाधारण है। उदाहरणार्थ- विश्वभर के विद्युतगणों की
१ बड़ी संख्याओं तथा संख्या - नामों के संबंध में विशेष जानने के लिये देखिये दत्त और सिंह कृत
हिन्दू गणितशास्त्र का इतिहास (History of Hindu Mathematics) मोतीलाल बनारसीदास, • लाहौर, द्वारा प्रकाशित, भाग १, पृ.११ आदि . २ संख्या १३६२ ३५६ को दाशमिक-क्रम से व्यक्त करने पर जो रूप प्रकट होता है वह इस प्रकार है
१५, ७७, ७२४, १३६, २७५, ००२, ५७७, ६०५, ६५३, ९६१, १८१, ५५५, ४६८, ०४४, ७१७, ९१४, ५७२, ११६, ७०९, ३६६, २३१, ४२५, ०७६, १८५, ६३१, ०३१, २९६,