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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २९२ में आर्यभट से पूर्व के भारतीय गणितज्ञान का बोध कराने वाले ग्रंथों की खोज करना एक विशेष महत्वपूर्ण कार्य हो जाता है। गणितशास्त्र संबंधी ग्रन्थों के नष्ट हो जाने के कारण सन् ५०० के पूर्वकालीन भारतीय गणितशास्त्र के इतिहास का पुनः निर्माण करने के लिये हमें हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों के साहित्य की, और विशेषत: धार्मिक साहित्य की छानबीन करना पड़ती है । अनेक पुराणों में हमें ऐसे भी खंड मिलते हैं जिनमें गणितशास्त्र और ज्योतिषविद्या का वर्णन पाया जाताहै। इसी प्रकार जैनियों के अधिकांश आगमग्रन्थों में भी गणितशस्त्र या ज्योतिविद्या की कुछ न कुछ सामग्री मिलती है । यही सामग्री भारतीय परम्परागत गणित की द्योतक है, और वह उस ग्रन्थ से जिसमें वह अन्तर्भूत है, प्राय: तीन चार शताब्दियां पुरानी होती हैं । अत: यदि हम सन् ४०० से ८०० तक की किसी धार्मिक या दार्शनिक कृति की परीक्षा करें तोउसका गणितशास्त्रीय विवरण ईसवी के प्रारंभ से सन् ४०० तक का माना जा सकता है । उपर्युक्त निरूपण के प्रकाश में ही हम इस नौंवी शताब्दी के प्रारंभ की रचना षट्खंडागम की टीका धवला की खोज को अत्यन्त महत्वपूर्ण समझते हैं । श्रीयुत हीरालाल जैन ने इस ग्रन्थ का सम्पादन और प्रकाशन करके विद्वानों को स्थायी रूप से कृतज्ञता का ऋणी बना लिया है। गणितशास्त्र की जैनशाखा १ सन् १९१२ में रंगाचार्यद्वारा गणितसारसंग्रह की खोज और प्रकाशन के समय से विद्वानों को आभास होने लगा है कि गणितशास्त्र की ऐसी भी एक शाखा रही है जो कि पूर्णत: जैन विद्वानों द्वारा चलाई जाती थी । हाल ही में जैन आगम के कुछ ग्रन्थों के अध्ययन से जैन गणितज्ञ और गणित ग्रन्थों संबंधी उल्लेखों का पता चला है। जैनियों का धार्मिक साहित्य चार भागों में विभाजित है जो अनुयोग, (जैनधर्म में) तत्वों का स्पष्टीकरण, कहलाते हैं। उनमें से एक का नाम करणानुयोग या गणितानुयोग, अर्थात् गणितशास्त्र संबंधी तत्वों का स्पष्टीकरण है । इसी से पता चलता है कि जैनधर्म और जैनदर्शन में गणितशास्त्र को कितना उच्च पद दिया गया है । १ देखो - रंगाचार्य द्वारा सम्पादित गणितसार संग्रह की प्रस्तावना, डी.ई. स्मिथद्वारा लिखित, मद्रास, १९१२. २ बी. दत्त: गणित शास्त्रीय जैन शाखा, बुलेटिन कलकत्ता गणित सोसायटी, जिल्द २१ (१९१९) पृष्ठ ११५ से १४५.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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