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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २७२ यंत्र नं. ४७७ में प्राण मं ४-१ प्राण और लिखना चाहिए। (नानकचंदजी, खतौली, पत्र १०-११-४१) समाधान - इसका उत्तर वही है जो कि शंका नं. २ में दिया गया है। पुस्तक ३, पृ. २३ ११. शंका - २ २ अ की वर्गशालाका अ होगी यह शुद्धज्ञात नहीं होता, क्योंकि २२० २५६ होता है, और २५६ की वर्गशालाका ३ है, ४ नहीं ? (नेमीचंद जी वकील, सहारनपुर, पत्र २४-११-४१) समाधान - २२ अ का अर्थ है २ का २ अ के प्रमाण वर्ग । अब यदि हम अ को ४ के बराबर मान लें तो - २२ अ =२२० २१६ =२५६ x २५६ = ६५५३६, जिसकी वर्ग शलाका ४ होगी । शंकाकार ने भूल यह की है कि २२अ - २ (२२) अ मान लिया है। किन्तु ऐसा नहीं है। प्रचलित पद्धति के अनुसार २२अ = २ (२ ) होता है । अतएव अनुवाद में उदाहरण रूप से जो बात कही गई है उसमें कोई दोष नहीं है। पुस्तक ३, पृ. ३० १२. शंका - यहां सोलह राशिगत अल्पबहुत्व निरूपण में जो अभव्यों से सिद्धकाल का गुणकार छह महिनों के अष्टम भाग में एक मिला देने पर उत्पन्न हुई समयसंख्या से भाजित अतीत काल की अनन्तवां भागकहा है वह अशुद्ध प्रतीत होता है । मेरी राय में अतीत काल को छह माह आठ समय से भाग देने पर जो लब्ध आवे उसको ६०८ से गुणा करने पर उत्पन्न हुई राशि का अनन्तवां भाग गुणकार होना चाहिये ? (नेमीचंद जी वकील, सहारनपुर,पत्र २४-११-४१) समाधान - उक्त शंका में शंकाकार की दृष्टि उस प्रचलित मान्यता पर है जिसके अनुसार प्रत्येक छह माह आठ समय में ६०८ जीव मोक्ष जाते हैं। किन्तु धवला में उक्त स्थल पर दिये गये अल्पबहुत्व में उक्त पाठ द्वारा उसकी सिद्धि नहीं होती, जब तक कि उस पाठ को विशेष रूप से परिवर्तित न किया जाय । उक्त स्थल का अर्थ करते समय हमारी भी दृष्टि इस बात पर थी। किन्तु उपलब्ध पाठ वैसा होने तथा मूडबिद्री की ताड़पत्रीय प्रतियों के मिलान से भी उस पाठ में कोई परिवर्तन प्राप्त न होने से हम उस पाठ को बदलने या मूल को छोड़कर अर्थ करने में असमर्थ रहे । यथार्थत: उक्त पाठ से आगे जो सिद्धों का गुणकार हमने 'रूपशतपृथक्त्व' ग्रहण कर लिया था वह उपर्युक्त दृष्टि से ही केवल एक प्रति
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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