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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
२७० समाधान - प्रस्तुत ग्रंथभाग में उन्हीं यंत्रों को बनाया गया है, जिनका वर्णन धवला टीका में पाया जाता है । प्रमत्तसंयत पर्याप्त तथा अपर्याप्त के आलापों का धवला टीका में कथन नहीं है, अत: उनके पृथक यंत्र भी नहीं बनाये गये । तो भी विषय के प्रसंगवश विशेषार्थ के अन्तर्गत सर्वसाधारण पाठकों के परिज्ञानार्थ पृ. ४३३ पर उनका कथन किया गया है। पुस्तक २, पृ. ४५६ ५. शंका - पृ. ४५१, यंत्र ३१, में प्राण में अ, लिखा है सो नहीं होना चाहिये ?
(नानकचंद जी खतौली, पत्र १०.११.४१) समाधान-जिन गुणस्थानों या जीवसमासों में पर्याप्त और अपर्याप्त काल सम्बंधी आलाप सम्भव है, उनके सामान्य आलाप कहते समय पाठकों को भ्रम न हो, इसलिए पर्याप्त काल में सम्भव प्राणों के आगे प लिखा गया है। तथा अपर्याप्त काल में सम्भवित प्राणों के आगे अ लिखा गया है । इसी नियम के अनुसार प्रस्तुत यंत्र नं. ३१ में नारक सामान्य मिथ्यादृष्टियों के आलाप प्रकट करते समय पर्याप्त अवस्था में होने वाले १० प्राणों के नीचे प और अपर्याप्त अवस्था में सम्भव ७ प्राणों के आगे अ लिखा गया है।
पुस्तक २, पृ. ६२३
६. शंका - पृ. ६२३ के विशेषार्थ में यह और होना चाहिए कि चौदहवें गुणस्थान में पर्याप्त का उदय रहता है, लेकिन नोकर्मवर्गणा नहींआती ?
(रतनचंदजी मुख्तार, सहारनपुर, पत्र ३.४.४१) समाधान - उक्त विशेषार्थ में जो बात सयोगिकेवली के लिये कही गई है, वह अयोगिकेवली के लिये भी उपयुक्त होती है । अतएव वहां उक्त भावार्थ को लेने में कोई आपत्ति नहीं।
पुस्तक २, पृ. ८३८
७. शंका - यंत्र नं. २५३ के प्राण के खाने में ३, २ भी होना चाहिए क्योंकि, योग के खाने में ६ योग लिखे हैं ?
समाधान - योग के खाने में ६ योग लिखे जाने से ३ और २ प्राण और भी कहने की आवश्यकता प्रतीत होना स्वाभाविक ही है। किन्तु, यहां पर ६ योगों का उल्लेख विवक्षा