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________________ २५८ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका निश्चितबुद्धिजनानुग्रहार्थ द्रव्यार्थिक नयादेशना, मन्दधियामनुग्रहार्थ पर्यायार्थिकनयादेशना। ___ अर्थात् तीक्ष्ण बुद्धिवाले मनुष्यों के लिये द्रव्यार्थिकनयका का उपदेश दिया गया है, और मन्द बुद्धिवालों के लिये पर्यायार्थिकनयका । तृतीय भागपृ. २७७ पर कहा है - ण पुणरुत्तदोसो वि जिणवयणे संभवइ, मदबुद्धिसत्ताणुग्गहट्टदाए तस्स साफल्लादो। अर्थात्, जिन भगवान् के वचनों में पुनरुक्त दोष की संभावना भी नहीं करना चाहिये, क्योंकि, मंदबुद्धि जीवों का उससे उपकार होता है, यही उसका साफल्य है । पृ. ४५३ पर कहा है - सुहुमपरूवणमेव किण्ण वुच्चदै ? ण, मेहावि-मंदाइमंदमेहाविजणाणुग्गहकारणेण तहोवएसा। अर्थात्, अमुक बात का सूक्ष्म प्ररूपणमात्र क्यों नहीं कर दिया, विस्तार क्यों किया ? इसका उत्तर है कि मेधावी, मंदबुद्धि और अत्यंत मंदबुद्धि, इन सभी प्रकार के लोगों का अनुग्रह करने के लिये उस प्रकार उपदेश किया गया है । इसी चतुर्थ भाग के पृ. ९ पर कहा है - किमट्ठमुभयथा णिद्देसो कीरदे ? न, उभयनयावस्थितसत्वानुग्रहार्थत्वात् । ण तइओ णिद्देसो अस्थि, णयद्दयसंट्ठियजीववदिरित्तसोदाराणं असंभवादो। अर्थात्, प्रश्न होता है कि ओघ और आदेश, ऐसा दो प्रकार से ही क्यों निर्देश किया जाता है ? इसका उत्तर है कि दोनों नयों वाले जीवों के उपकार के लिये । तीसरे प्रकार का कोई निर्देश ही नहीं है, क्योंकि, उक्त दो नयों में स्थित जीवों के अतिरिक्त तीसरे प्रकार के श्रोता होना असंभव है । पुन: पृ. ११५ पर कहा है - . एदेण दव्वपज्जवट्ठियणयपज्जायपरिणदजीवाणुग्गहकारिणो जिणा इदि जाणाविदं। अर्थात्, अमुक प्रकार कथन से यह ज्ञात कराया गया है कि जिन भगवान् द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक, इन दोनों नयवर्ती जीवों का अनुग्रह करने वाले होते हैं। पृ. १२० पर कहा है - 'किमट्ठ एदेसु तीसु सुत्तेसु पज्जयणयदेसणा' बहूणं जीवाणमणुग्गहडें । संगहरुइजीवोहितो बहूणं वित्थररुइजीवाणमुवलंभादो ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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