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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २४२ अर्थात् हमारा किया हुआ अर्थ यद्यपि पूर्वाचार्य-संप्रदाय के विरुद्ध पड़ता है, तो भी तंत्र युक्ति के बल से हमने उसका प्ररूपण किया । अत: 'यह इसी प्रकार है' ऐसा दुराग्रह नहीं करना चाहिये, क्योंकि, अतीन्द्रिय पदार्थों के विषय में अल्पज्ञों द्वारा विकल्पितं युक्तियों के एक निश्चयरूप निर्णय के लिये हेतु नहीं पाया जाता । अत: उपदेश को प्राप्त कर विशेष निर्णय करने का प्रयत्न करना चाहिये । यहां ग्रंथकार की कैसी निष्पक्ष, निर्मल, शोधक बुद्धि और जिज्ञासा प्रकट हुई है ? (३) एक मुहूर्त में कितने उच्छ्वास होते हैं, यह भी एक मतभेद का विषय हुआ है । एक मत है कि एक मुहूर्त में केवल ७२० प्राण अर्थात् श्वासोच्छ्वास होते हैं । किन्तु धवलाकार कहते हैं कि यह मत न तो एक स्वस्थ पुरुष के श्वासोच्छ्वासों की गणना करने से सिद्ध होता है, और न केवली द्वारा भाषित प्रमाणभूत अन्य सूत्र से इसका सामज्च्चस्य बैठता है। उन्होनें एक प्राचीन गाथा उद्धृत करके बतलाया है कि एक मुहुर्त के उच्छवासों का ठीक प्रमाण ३७७३ है, और इसी प्रमाण द्वारा सूत्रोक्त एक दिवस में १,१३,१९० प्राणों का प्रमाण सिद्ध होता है । पूर्वोक्त मत से तो एक दिन में केवल २१,६०० प्राण होंगे, जो किसी प्रकार भी सिद्ध नहीं। (४) उपशामक जीवों की संख्या के विषय में उत्तरप्रतिपत्ति और दक्षिणप्रतिपत्ति, ऐसी दो भिन्न मान्यताएं दी हैं। प्रथम मतानुसार उक्त जीवों की संख्या ३०४, तथा द्वितीय मतानुसार उनसे ५ कम अर्थात् २९९ हैं । इस मतभेद की प्ररूपक दो गाथाएं भी उद्धृत की गई हैं। उनमें से एक में एक तीसरा मत और स्फुटित होता है, जिसके अनुसार उपशामकों की संख्या पूरे ३०० है । इन मतभेदों पर धवलाकार ने कोई ऊहापोह नहीं किया, उन्होंने केवल मात्र उनका उल्लेख ही किया है। (४) उपशामकजीवों की संख्या के विषय में उत्तरप्रतिपत्ति और दक्षिणप्रतिपत्ति, ऐसी दो भिन्न मान्यताएं दी हैं। प्रथम मतानुसार उक्त जीवों की संख्या ३०४, तथा द्वितीय मतानुसार उनसे ५ कम अर्थात् २९९ है । इस मतभेद की प्ररूपक दो गाथाएं भी उद्धृत की गई है। उनमें से एक में एक तीसरा मत और स्फुटित होता है, जिसके अनुसार उपशामकों की संख्या पूरे ३०० है । इन मतभेदों पर धवलाकार ने कोई ऊहापोह नहीं किया, उन्होंने केवल मात्र उनका उल्लेख ही किया है। (५) इन्हीं उत्तर और दक्षिण प्रतिपत्तियों का मतभेद प्रमत्तसंयत राशि के प्रमाणप्ररूपण में भी पाया जाता है। उत्तरप्रतिपत्ति के अनुसार प्रमत्तों का प्रमाण ४,६६,६६,६६४
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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