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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २२९ आदि व मध्य रहित है । एक अविभागी परमाणु जितने आकाश को रोकता है उतने आकाश को एक क्षेत्र प्रदेश कहते हैं। अनन्तानन्त परमाणुओं का एक अवसन्नासन्न स्कंध, आठ अवसन्नासन्न स्कंधों का एक सन्नासन्न स्कंध, आठ सन्नासन्न स्कंधों का एक रथरेणु, आठ रथरेणुओं का उत्तम भोगभूमिसंबंधी बालाग्र, आठ उत्तम भोगभूमिसंबंधी बालाग्रों का एक मध्यम भोगभूमिसंबंधी बालाग्र, आठ मध्यम भोगभूमि संबंधी बालाग्रों का एक जघन्य भोगभूमिसंबंधी बालाग्र, आठ जघन्य भोगभूमिसंबंधी बालानों का एक कर्मभूमिसंबंधी बालाग्र, आठ कर्मभूमिसंबंधी बालाग्र, आठ जघन्य भोगभूमिसंबंधी बालानों का एक कर्मभूमिसंबंधी बालाग्र, आठ कर्मभूमि संबंधी बालारों की एक लिक्षा (लीख), आठ लिक्षाओं का एक जूं, आठ जूबों का एक यव (यव-मध्य), और आठ यवों का एक अंगुल होता है। अंगुल तीन प्रकार का है, उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल और आत्मांगुल | ऊपर जिस अंगुल का प्रमाण बतलाया है वह उत्सेधांगुल (सूचि) है। पांच सौ उत्सेधांगुलों का एक प्रमाणांगुल होता है, जो अपसर्पिणीकाल के प्रथम चक्रवर्ती के पाया जाता है वह उस उस काल में उस क्षेत्र का आत्मांगुल कहलाता है। मनुष्य, तिर्यच, देव और नारकियों के शरीर की अवगाहना तथा चतुर्निकाय देवों के निवास और नगर के प्रमाण के लिये उत्सेधांगुल ही ग्रहण किया जाता है । द्वीप, समुद्र, पर्वत, वेदी, नदी, कुंड, जगाती (कोट), वर्ष (क्षेत्र) का प्रमाण प्रमाणांगुल से किया जाता है, तथा श्रृंगार, कलश, दर्पण, वेणु, पटह, युग, शयन, शकट, हल, मूसल, शक्ति, तोमार, सिंहासन, बाण, नाली, अक्ष, चामर, दुंदुभि, पीठ, छत्र तथा मनुष्यों के निवास व नगर, उद्यानादि का प्रमाण आत्मांगुल से किया जाता है । छह अंगलों का पाद, दो पादोंकी विहस्ति (बलिस्त), दो विहस्तियों का हाथ, दो हाथों का किष्कु, दो किष्कुओं का दंड, युग, धनु, मुसल व नाली, दो हजार दंडों का एक कोश तथा चार कोशों का एक योजन होता है ।(ति.प.१, ९८-११६) द्रव्य का अविभागी अंश : परमाणु . ८ जूं : यव अनन्तानन्त परमाणु = अवसन्नासन्न स्कंध ८ यव : उत्सेधांगुल ८ अवसन्नासन्नस्कंध = सन्नासन्न स्कंध (५०० उत्सेधांगुल = प्रमाणांगुल) ८ सन्नासन्नस्कंध = त्रुटरेणु ६ अंगुल - पाद ८ त्रुटरेणु = त्रुसरेणु २ पाद : विहस्ति ८ त्रसरेणु = रथरेणु २ विहस्ति : हाथ ८ रथरेणु = उत्तम भो.भू.बालाग्र २ हाथ किष्कु ८ उ.भो.भू.बा. - मध्यम भो.भू.बालाग्र २ किष्कु दंड, युग, धनु,
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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