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________________ २२६ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका और प्रतिष्ठित वनस्पति के प्रमाण को मिला कर उत्पन्न हुई राशि को पुनः तीन बार वर्गित संवर्गित करना चाहिये इस प्रकार प्राप्त हुई राशि में कल्पकाल के समय, स्थिति और अनुभागबंधाध्यवसाय स्थानों का प्रमाण तथा योग के उत्कृष्ट अविभागाप्रतिच्छेद मिलाकर उसे पुन: तीन बार वर्गित संवर्गित करने से जो राशि उत्पन्न होगी वह जघन्य परीतानन्त कही जाती है। आगे बतलाये जाने वाले जघन्ययुक्तानन्त से एक कम उत्कृष्ट परीतानन्त का प्रमाण है, तथा बीच के सब भेद मध्यम परीतानन्त हैं। जघन्य परीतानन्त को वर्गित संवर्गित करने से जघन्य युक्तानन्त होता है। आगे बताये जाने वाले जघन्य अनन्तानन्त से एक कम उत्कृष्ट युक्तानन्त का प्रमाण है, तथा बीच के सब भेद मध्यम युक्तानन्त होते हैं। जघन्य युक्तानन्तका वर्ग जघन्य अनन्तानन्त होता है। इस जघन्य अनन्तानन्त को तीन बार वर्गित संवर्गित करके उसमें सिद्ध जीव, निगोदराशि, प्रत्येकवनस्पति, पुदलराशि, काल के समय और अलोकाकाश, ये छह राशियां मिलाकर उत्पन्न हुई राशि को पुन: तीन बार वर्गित संवर्गित करके उसमें धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य संबंधी अगुरुलघुगुण के अविभागप्रतिच्छेद मिला देना चाहिये । इस प्रकार उत्पन्न हुई राशि को पुन: तीन बार वर्गित संवर्गित करके उसे केवल ज्ञान में से घटावें और फिर शेष केवल ज्ञान में उसे मिला देवे। इस प्रकार प्राप्त हुई राशि अर्थात् केवल ज्ञान प्रमाण उत्कृष्ट अनन्तानन्त होता है । जघन्य और उत्कृष्ट अनन्तानन्त की मध्यवर्ती सब गणना मध्यम अनन्तानन्त कहलाती है। (देखोपृ. १९.२६ तथा त्रिलोककसार गाथा १८-५१) । २. कालप्रमाण- जीवों का परिमाण जानने के लिये दूसरा माप काल का लगाया जाता है, जिसके भेद प्रभेद इस प्रकार हैं - एक परमाणु को मंदगति से एक आकाशप्रदेश से दूसरे आकाशप्रदेश में जाने के लिये जो काल लगता है वह समय कहलाता है। यह काल का सबसे छोटा, अविभागी परिमाण है । असंख्यात् (अर्थात् जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण) समयों की एक आवलि होती है। संख्यात आवलियों का एक उच्छ्वास या प्राण होता है। सात उच्छ्वासों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव, और साढ़े अड़तीस लवों की एक नाली होती है । दो नाली का मुहूर्त और तीर्स मुहूर्त का एक अहोरात्र या दिवस होता है । वर्तमान कालगणना में अहोरात्र चौबीस घंटों का माना जाता है । इसके अनुसार एक मुहूर्त अड़तालीस मिनिट का, एक नाली चौबीस मिनिट की, एक लव ३७/३१/७७ सेकेंड का, एक स्तोत ५/१/५८/३५/९ सेकेंड का पड़ता है । आबलि और समय एक सेकेंड में बहुत सूक्ष्म काल प्रमाण होता है। (देखो पृ. ६५, तथा ति.प.४, २८४-२८८)
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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