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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका सकें उनका उपयोग किया जाये तथा मूडविद्रीकी की ताड़पत्र की प्रति से मिलान करने का प्रयत्न किया जाय, और उसके अभाव में सहारनपुर की प्रति के मिलान का उद्योग किया जाय। ३. मूल के अतिरिक्त हिन्दी अनुवाद दिया जाय, क्योंकि, उसके बिना सर्व स्वाध्याय प्रेमियों को ग्रंथराज से लाभ उठाना कठिन है । संस्कृत छाया न दी जाय क्योंकि एक तो उससे ग्रंथ का कलेवर बहुत बढ़ता है, दूसरे उससे प्राकृत के पठनपाठन का प्रचार नहीं होने पाता, क्योंकि, लोग उस छाया का ही आश्रय लेकर बैठ रहते हैं और प्राकृत की ओर ध्यान नहीं देते, और तीसरे जिन्हें संस्कृत का अच्छा ज्ञान है उन्हें मूलानुगामी अनुवाद की सहायता से प्राकृत के समझने में भी कोई कठिनाई नहीं होगी। ४. संस्कृत छाया न देने से जो स्थान की बचत होगी उसमें अन्य प्राचीन जैन ग्रंथों में से तुलनात्मक टिप्पण दिये जायें। ५. ऐसे ग्रंथों का सम्पादन प्रकाशन बार-बार नहीं होता, अत:एव इस कार्य में कोई ऐसी उतावली न की जाय जिससे ग्रंथ की प्रमाणिकता व शुद्धता त्रुटि पड़े। ६. उक्त कार्य में जितना हो सके उतना अन्य विद्धानों का सहयोग प्राप्त किया जाये। इन निर्णयों को सन्मुख रखकर मैंने सम्पादन कार्य की व्यवस्था का प्रयत्न किया। मेरे पास तो अपने कालेज के दैनिक कर्तव्य से तथा गृहस्थी की अनेक चिन्ताओं और विघ्न-बाधाओं से बचा हुआ ही समय था, जिसके कारण कार्य बहुत ही मन्दगति से चल सकता था। अत:एव एक सहायक स्थायी रूप से रख लेने की आवश्यकता प्रतीत हुई। सन् १९३५ में बीना निवासी पं. वंशीधर जी व्याकरणाचार्य को मैंने बुला लिया, किन्तु लगभग एक माह कार्य करने के पश्चात् ही कुछ गार्हस्थिक आवश्यकता के कारण उन्हें कार्य छोड़कर चले जाना पड़ा। तत्पश्चात् साढूमल (झांसी) के निवासी पं. हीरालाल जी शास्त्री न्यायतीर्थ को बुलाने की बात हुई। वे प्रथम तीन वर्ष उज्जैन १. मेरी गृहीणी सन १९२७ से हृदयरोग से ग्रसित हो गई थी। अनेक औषधि उपचार करने पर भी उसका यह रोग हटाया नहीं जा सका, किन्तु धीरे-धीरे बढ़ता ही गया । बहुतवार मरणप्राय अवस्था में बड़े मंहगे इलाजों के निमित्त से प्राणरक्षा की गई। इस प्रकार ग्यारह वर्ष तक उसकी जीवनयात्रा चलाई। अन्तत: सन् १९३८ के दिसम्बर मास में उसका चिरवियोग हो गया।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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