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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २०९ उपस्थित की हैं। यहां उन्हीं शंकाओं के संक्षेप में समाधान करने का प्रयत्न किया जाता है। ये शंका-समाधान यहां प्रथम भाग के पृष्ठक्रम से व्यवस्थित किये जाते हैं। पृष्ठ ६ १. शंका - 'वियलियमलमूढदसणुत्तिलया' में 'मलमूढ' की जगह 'मलमूल' पाठ अधिक ठीक प्रतीत होता है, क्योंकि सम्यग्दर्शन के पच्चीस मल दोषों में तीन मूढ़ता दोष भी सम्मिलित हैं । (विवेकाभयुदय, ता.२०.१०.४०) समाधान - 'मलमूढ' पाठ सहारनपुर की प्रति के अनुसार रखा गया है और मूडबिद्री से जो प्रतिमिलान होकर संशोधन-पाठ आया है, उसमें भी 'मलमूढ' के स्थान पर कोई पाठ परिवर्तन नहीं प्राप्त हुआ । तथा उसका अर्थ सर्व प्रकार के मल और तीन मूढताएं करना असंगत भी नहीं है। २. शंका - गाथा ४ में 'मह' पाठ है, जिसका अनुवाद 'मुझपर' किया गया है। समझ में नही आता कि यह अनुवाद कैसे ठीक हो सकता है, जब कि 'महु' का संस्कृत रूपान्तर 'मधु' होता है ? (विवेकाम्युदय, ता. २०.१०.४०) समाधान - प्रकृत में 'महु' का संस्कृत रूपान्तर 'मह्यम्' करना चाहिए । देखो हैम व्याकरण 'महु मज्झु ड.सि ड.स्भ्याम्' ८, ४, ३७९. इसी के अनुसार 'मुझपर' ऐसा अर्थ किया गया है। ३. शंका - गाथा ४ में 'दाणवरसीहो' पाठ है । पर उसमें नाश करने का सूचक 'हर' शब्द नहीं है । 'वर' की जगह 'हर' रखना चाहिए था। (विवेकाभ्युदय, ता. २०.१०.४०) ___समाधान - हमारे सन्मुख उपस्थित समस्त प्रतियों में 'दाणवरसीहो' ही पाठ था और मूडबिद्री से उसमें कोई पाठ-परिवर्तन नहीं मिला । तब उसमें 'वर' के स्थान पर जबरदस्ती 'हर' क्यों कर दिया जाय, जबकि उसका अर्थ 'हर' के बिना भी सुगम है ? 'वादीभसिंह' आदि नामों में विनाशबोधक कोई शब्द न होते हुए भी अर्थ में कोई कठिनाई नहीं आती। पृष्ठ ७ ___४. शंका - गाथा ५ में 'दुकयंतं' पाठ है जिसका अर्थ किया गया है 'दुष्कृत अर्थात् पापोंका अन्त करने वाले' यह अर्थ किस प्रकार निकाला गया, उक्त शब्द का संस्कृत रूपान्तर क्या है, यह स्पष्ट करना चाहिए। (विवेकाभ्युदय, २०.१०.४०)
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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