________________
षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१८. १८. भवधारणीय - भवधारणए त्ति १८. भवधारणीय - भवधारणीय
अणियोगद्दारं के ण कम्मेण णेरइय- अर्थाधिकार, किस कर्म से नरकभव प्राप्त तिरिक्ख-मणुस-देवभवा धरिज्जंति त्ति होता है, किससे तिर्यचभव, किससे परूवेदि।
मनुष्यभव और किससे देवभव प्राप्त होता
है, इसका कथन करता है। १९. पोग्गलत्त - पोग्गलअत्थेति १९. पुद्गलात्त - पुद्गलार्थ अनुयोगद्वार दण्डादि
अणियोगद्दारं गहणादो अत्ता पोग्गला के ग्रहण करने से आत्त पुद्गलों का , परिणामदो अत्ता पोग्गला उबभोगदो अत्ता मिथ्यात्वादि परिणामों से आत्त पुद्गलोंका, पोग्गला आहारदो अत्ता पोग्गला ममत्तीदो उपभोग से आत्त पुगलों का, आहार से अत्ता पोग्गला परिग्गहादो अत्ता पोग्गला . आत्त पुद्गलों का, ममता से आत्त पुद्गलों त्ति अप्पणिज्जाणप्पणिज्ज पोग्गलाणं का और परिग्रह से आत्त पुद्गलों का, इस पोग्गलाणं संबंधेण पोग्गलत्तं पत्तजीवाणं प्रकार आत्मसात् किये हुए और नहीं किये च परूवणं कुणदि।
हुए पुद्गलों का तथा पुद्गल के संबन्ध से पुद्गलत्व को प्राप्त हुए जीवों का वर्णन
करता है। २०.णिधत्तमणिधत्त-णिधत्तमणिधत्तमिदि २०. निधत्तानिधत्त - निधत्तानिधत्त
अणियोगद्दारं पयडि-डिदि-अणुभागाणं अर्थाधिकार प्रकृति, स्थिति और अनुभाग णिधत्तमणिधत्तं च परूवेदि।णिधत्तमिदि के निधत्त और अनिधत्त का प्रतिपादन किं ? जं पदेसग्गं ण सक्कमुदए दाएं करता है । जिसमें प्रदेशाग्र उदय अर्थात् अण्णपयडिं वा संकामेदंतं णिधत्तं णाम। उदीरणा में नहीं दिया जा सकता है और तविवरीयमणिधत्तं।
अन्य प्रकृतिरूप संक्रमणों को भी प्राप्त नहीं कराया जा सकता है, उसे निधत्त कहते हैं।
अनिधत्त इससे विपरीत होता है। २१. णिकाचिदमणिकाचिद - २१. निकाचितानिकाचित - णिकाचिदमणिकाचिदमिदि अणियोगद्दारं निकाचितानिकाचित अर्थाधिकार प्रकृति, पयडि - ट्ठिदि - अणुभागणं णिकाचणं स्थिति और अनभाग के निकाचित और परूवेदि । णिकाच-णमिदि किं ? जं अनिकाचितका वर्णन करता है । जिसमें पदेसग्गं ण सक्कमोक - ड्डिदुमण्णपयडिं प्रदेशाग्रका उत्कर्षण, अपकर्षण, संकामेंदुमुदए दादुं वा तण्णिकाचिंदणाम। परप्रकृतिसंक्रमण नहीं हो सकता और न