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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १८१ ११. मोक्ख - मोक्खो पुण देस ११. मोक्ष- मोक्ष अर्थाधिकार देशनिर्जरा और सयलणिज्जराहि परपयडिसंक- सकलनिर्जरा के द्वारा परपकृतिसंक्रमण, मोकड्डणुक्कड्डण- अद्धहिदिगलणेहि उत्कर्षण अपकर्षण और स्थितिगलन से पयडि-द्विदि-अणुभाग-पदेसभिण्णं प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध मोक्खं वण्णेदि त्ति अत्थभेदो। और प्रदेशबन्ध का आत्मा से भिन्न होना मोक्ष है, इसका वर्णन करता है। १२. संकम - संकमेत्ति अणियोगद्दारं पयडि- १२. संक्रम - संक्रम अर्थाधिकार प्रकृति, ट्ठिदि-अणुभाग-पदेससंकमे परूवेदि। स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों के संक्रमण का प्ररूपण करता है। १३. लेस्सा - लेस्सेत्ति अणिओगद्दारं १३. लेश्या - लेश्या अनुयोगद्वार छह द्रव्य छदव्वलेस्साओ परूवेदि। लेश्याओं का प्रतिपादन करता है। १४. लेस्सायभ्य - लेस्सापरिणामेत्ति १४. लेश्याकर्म - लेश्याकर्म अर्थाधिकार अणियोग दारमंतरंग-छले स्सा - अन्तरंग छह लेश्याओं से परिणत जीवों परिणयजीवाणं बज्झकज्जपरूपणं के बाहा कार्यो का प्रतिपादन करता है। कुणदि। १५. लेससापरिणाम - लेस्सापरिणमेत्ति १५. लेश्यापरिणाम - लेश्यापरिणाम अणियोगद्दारं जीव-पोग्गलाणं दव्व- अर्थाधिकार जीव और पुद्गलों के द्रव्य और भावलेस्साहि परिणमणविहाणं वण्णेदि। भावरूप से परिणमन करने के विधान का कथन करता है। १६ सादमसाद - सादमसादेत्ति १६. सातासात - सातासात अर्थाधिकार अणियोगद्दारमे यंतसाद-अणेयंततोदाणं एकान्त सात, अनेकान्त सात, एकान्त (?) गदियादिमग्गणाओ अस्सिदूण असात, अनेकान्त असात का गति आदि परूवणं कुणइ। मार्गणाओं के आश्रय से वर्णन करता है। १७. दीहरे हस्स - दीहे रस्स्सेित्ति १७. दीर्घन्हस्व - दीर्घन्हस्व अर्थाधिकार अणिओगद्दारं पयडि-ट्ठिदि-अणुभाग- प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों का पदेसे अस्सिदूण दीहरहस्सत्तं परूवेदि।। आश्रय लेकर दीर्घता और हृस्वता का कथन करता है।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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