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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका पुष्पदंत और भूतबलिने सूत्र रूप से षखंडागम के भीतर किया। इस पाहुड के जो चौबीस अवान्तर अधिकार थे, उनके विषय का संक्षेप परिचय धवलाकार ने वेदनाखंड के आदि में कराया है जो इस प्रकार है - १. कदि - कदीए ओरालिय-वेउन्विय- १. कृति - कृति अर्थाधिकार में औदारिक तेजाहार-कम्मइयसरीराणंसंघादण- वैक्रियक, तैजस, आहारक और कार्मण परिसादणकदी- ओ भव-पढमाढम- इन पांचों शरीरों की संघातन और चरिमम्मि हिदजीवाणं कदि-णोकदि- परिशातनरूप कृतिका तथा भवके प्रथम, अवत्तव्वसंखाओ च परूवि-जंति। अप्रथम और चरम समय में स्थित जीवों
के कृति, नोकृति और अवक्तव्यरूप
संख्याओं का वर्णन है। २. वेदणा - वेदणाए कम्म-पोग्गलाणं २. वेदना - वेदना अर्थाधिकार में
वेदणा-सण्णिदाणं वेदण-णिक्खेवादि- वेदनासंज्ञिक कर्मपुद्गलों का वेदनानिक्षेप सोलसेहि अणिओ गद्दारेहि परूवणा आदि सोलह अधिकारों के द्वारा वर्णन कीरदे।
किया गया है। ३. फास - फासणिओगद्दारम्मि कग्म- ३. स्पर्श - स्पर्श अर्थाधिकार में स्पर्श गुण पोग्गलाणं णाणावरणादिभेएण के संबन्ध से प्राप्त हुए स्पर्शनिर्माण, अट्ठभेदमुवगयाणं फास गुणसंबंधेण स्पर्श निक्षेप आदि सोलह अधिकारों के पत्त - फासणीमाण - फासणिक्खे - द्वारा ज्ञानावरणदि के भेद से आठ भेद को वादिसोलसेहि अणियोगद्दारेहित परूवणा प्राप्त हुए कर्मपुगलों का वर्णन किया गया
कीरदे।
४. कम्म - कम्मेत्ति अणिओगद्दारे पोग्गलाणं ४. कर्म - कर्म अर्थाधिकार में कर्मनिक्षेप णाणावरणादिकम्मकरणक्खमत्तणेण पत्त आदि सोलह अधिकारों के द्वारा कम्मसण्णाणं कम्मणिक्खेवादिसोलसेहि ज्ञानावरणादि कर्मकरण में समर्थ होने से अणियोगद्दारेहि परूवणा कीरदे। जिन्हें कर्मसंज्ञा प्राप्त हो गई है, ऐसे पुद्गलों
का वर्णन किया गया है। ५. पयडि - पयडि त्ति अणियोगद्दारम्हि ५. प्रकृति - प्रकृति अर्थाधिकार में कृति पोग्गलाणं कदिम्हि परूविद-संघादाणं अधिकार में कहे गये संघातनरूप, वेदणाए पण्णविदावत्थाविसेस- अधिकार में कहे गये अवस्थाविशेष