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________________ च - षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १७२ इसका तात्पर्य यह है कि जो सम्मग्दृष्टि होता है वह तो दश पूर्वो का अध्ययन कर लेता है और आगे भी बढता जाताहै, किन्तु जो मिथ्यादृष्टि होता है वह कुछ कम दश पूर्वो तक तो पढ़ता जाता है, किन्तु वह दशमे को भी पूरा नहीं कर पाता । इसका उदाहरण उन्होंने एक अभव्य का दिया है जो किसी ग्रंथि-देश पर आजाने से उस ग्रंथिका भेदन नहीं कर पाता। पर टीकाकार ने यह नहीं बतलाया कि कुछ कम दशवें पूर्व में श्रुतपाठी कौन सी ग्रंथि पाकर रुक जाता है और उसका भेदन क्यों नहीं कर पाता। अनुयोग के दो भेद . प्रथमानुयोग का विषय १. मूलपढमाणुओग पढमाणिओए चउवीस अत्थाहियारा २. गंणिआणुओग तित्थयर-पुराणेसु सव्वपुराणाणमंतब्भावादो - मूलप्रथमानुयोग का विषय अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा देवगमणाई (जयधवला) पढमाणियोगो पंचआउंचवणाई जम्मणाई अभिसेआ सहस्सपदेहि (५०००) पुराणं वण्णेदि । उत्तं रायवरसिरीओ पव्वजाओ तवा य उग्गा केवलनाणुप्पयाओ तित्थ पवत्तणाणि सीसा वारसविहं पुराणं जं दिदं जिणवरेहि सव्वेहि। गणा गणहरा अजपवत्तिणीओ संघस्स तं सव्वं वण्णेदि हु जिणवंसे रायवंसे य ॥१॥ चउब्विहस्स जं च परिमाणं जिण मण पन्जव पढमो अरहंताणं विदियोपुण चक्कवहिवंसो आहिनाणी सम्मत्त सुअनाणिणो वाई द। विजाहाराण तदियो चउत्थओ वासु अणत्तरगई उत्तरवेउन्विण्णो मुणिणो देवाणं ॥२॥ चारणवंसो तह पंचमो दु छट्ठो जत्तिआ सिद्धा सिद्धीवहो जहदेसिओ जच्चिर य पण्णसमणाणं । सत्तमओ कुरुवंसो च कालं पाओवगया जे जेहिं जात्तियाई भत्ताई अट्ठमओ तह य हरिवंसो ॥३॥ णवमो य छे इत्ता अंतगडे मुणिवरुत्तमे तमरओघविप्पमुक्के मुक्खसुहमणुत्तंर च पत्ते ___ इक्खयाणं दसमो वि य कासियाणं बोद्धव्वो। एवमन्ने अ एवमाइभावा मूलपढमाणुओगे CD वाईणेक्कारसमो बारसमो णाहवंसो दु ॥४॥ वा कहिआ। गंडिआणुओग गंडिआणुओगे कुलगर-तित्थथर-चक्कवट्टिदसार-वलदेव-वासुदेव-गणधन - भद्दवाहुतवोकम-हरिवंस-उस्सप्पिणी-चित्तंतरअमर-नर-तिरिय-निरय - गइइमण - विविहपरियट्टणेसु एवमाइआओ गंडिआओ आघविजंति पण्णविजंति ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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