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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १६० नाम नंदीसूत्र में अंगबाह्म श्रुत के आवश्यकव्यतिरिक्त भेद के अन्तर्गत पाये जाते हैं। किन्तु पांचवा भेद वियाहपण्णत्तिका नाम पांचवें श्रुतांग के अतिरिक्त और नहीं पाया जाता। सिद्धसेणिअ परिकम्प के १४ उपभेद १. माउगापायाई २. एगट्टिअपयाई ३. अट्ठ या पादो? ' पयाई ४. पाढोआमास या आगस ' पयाई ५. केउभूअं ६. रासिबद्धं ७. एगगुणं ८. दुगुणं ९. तिगुणं १०. केउभूकं ११. पडिग्गहो १२. संसारपडिग्गहो १३. नंदावत्तं १४. सिद्धावत्तं १. चंदपण्णत्ती - छत्तीसलक्खपंचपदसहस्सेहि (३६०५०००) चंदायुपरिवारिद्धि-गइ-बिंबुस्सेह-वण्णणं कुणइ । २. सूरपण्णत्ती - पंचलक्खतिण्णिसहस्सेहि पदेहि (५०३०००) सूरस्यायु - भोगोव- भोग-परिवारिद्धि-गइ-बिंबुस्सेह-दिणकिर- गुजोव-वण्णणं कुणइ । ___ ३. जंबूदीवपण्णत्ती- तिण्णिलक्खपंचवीस - पदसहस्सेहि (३२५०००) जंबूदीवे णाणाविहमणुयाणं भोग-कम्मभूमियाणं अण्णे सिं च पव्वद-दह-णइ-वे इयाणं वस्सावासाकट्टिमजिणहरादीणं वण्णणं कुणइ। ४. दीवसायरपणणत्ती- वावण्णलक्खछत्तीस पदसहस्सेहि (५२३६०००) उद्धारपलपमाणेण दीवसायरपमाणं अण्णं पि दीवसायरंतब्भूदत्थं बहुभेयं वण्णेदि । ५. वियाहपण्णत्ती- चउरासीदिलक्खछत्तीस पदसहस्सेहित (८४३६०००) रूबिअजीवदव्वं अरूवि-अजीवदव्वं भवसिद्धियअभवसिद्धियरासिं च वण्णेदि । मणुस्ससेणिआ परिकम्म भी १४ भेद हैं जिनमें प्रथम १३ भेद उपर्युक्त ही हैं । १४ वां भेद ‘मणुस्सावत्तं' नाम का है। पुट्ठसेणिआदि शेष पांच परिकर्मों में प्रत्येक के ११ उपभेद हैं जो प्रथम तीन को छोड़कर शेष पूर्वोक्त ही हैं । अन्तिम भेद के स्थान में स्वनामसूचक भेद हैं, जैसे पुट्ठावत्तं, १ ये पाठभेद नंदीसूत्र और समवायांग के हैं।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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