SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णमोकार मंत्र के आदिकर्ता. जो ख्याति और प्रचार हिन्दुओं में गायत्री मन्त्रका है तथा बौद्धों में त्रिसरण मंत्र का था, वही जैनियों में णमोकार मंत्र का है । धार्मिक तथा सामाजिक सभी कृत्यों व विधानों के आरम्भ में जैनी इस मंत्र का उच्चारण करते हैं। यही उनका दैनिकजपमंत्र है। इसकी प्रख्याति का एक पद्य निम्न प्रकार है, जो नित्य पूजनविधान में उच्चारण किया जाता है - एसो पंच-णमोयारो सव्वपापप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं पढम होइ मंगलं । अर्थात् यह पंच नमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सब मंगले में प्रथम (श्रेष्ठ ) मंगल है। ___ इस मन्त्र का प्रचार जैनियों के तीनों सम्प्रदायों-दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानक वासियों में समान रूप से पाया जाता है। तीनों सम्प्रदायों के प्राचीनतम साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है। किंतु अभी तक यह निश्चय नहीं हुआ कि इस मंत्र के आदिकर्ता कौन हैं। यथार्थत: यह प्रश्न ही अभी तक किसी ने नहीं उठाया और इस कारण इस मंत्र को अनादिनिधन जैसा पद प्राप्त हो गया है। किन्तु षट्खंडागम और उसकी टीका धवला के अवलोकन से इस णमोकार मंत्र के कर्तृत्व के सम्बन्ध में कुछ प्रकाश पड़ता है, और इसी का यहां परिचय कराया जाता है। षट्खंडागम का प्रथम खण्ड जीवट्ठाण है और इस खंड के प्रारम्भ में यही सुप्रसिद्ध मंत्र पाया जाता है । टीकाकार वीरसेनाचार्य के अनुसार यही उक्त ग्रन्थ का सूत्रकारकृत मंगलाचरण है । वे लिखते हैं कि - ____ मंगल-णिमित्त-हेऊ -परिमाणं णाम तह य कत्तारं । वागरिय छप्पि पच्छा वक्खाणउसत्थमाइरियो ॥ इदि णायमाइरिय-परंपरागयं मणेणावहारिय पुन्वाइरियायाराणुसरणं तिरयणहेउ त्ति पुष्पदंताइरियो मंगलादीणं छण्णं सकारणाणं परूवणहूँ सुत्तमाह - णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उबज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ॥ (सं.पं.१, पृ.७)
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy