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________________ (iii) प्राचीन ग्रंथों के सम्पादन में दुरूहता की जो प्रतीति डॉ. हीरालाल जैन और मुनि नथमलजी को दूसरी सहस्राब्दि के अंतिम वर्ष में हुई थी वैसी ही नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि को भी एक सहस्रवर्ष पूर्व हो चुकी थीं। डॉ. हीरालाल जैन को भी अशुद्ध प्रतिलिपि से वास्ता पड़ा। अर्थबोध की सम्यक गुरुपरंपरा उन्हें भी नहीं मिली । अर्थ की आलोचनात्मक कृति का अभाव उन्हें खलता रहा । आगम अध्ययन-अध्यापन की परंपरा भी उनकी सहायता के लिये नही थीं । छिद्रान्वेषक पंडितों के अर्थ-विषयक मतभेद अपनी जगह थे ही। इन सब बाधाओं के बावजूद पलायन की प्रवृत्ति न होने के कारण ही पौरुष से खेलने में उन्हें जीवन रस मिलता रहा । इसीलिये उन्हें प्रारंभ में मिलने वाले विरोध की मुद्रा भी अंतत: अनुरोध के शील में परिवर्तित हो गई । १९५८ में, २० वर्षो के सात्विक श्रम के पश्चात्, षट्खंडागम के पोड़षिक प्रस्फोटन की अंतिम जिल्द को सम्पूर्ण करते समय सम्पादक डॉ. हीरालाल जैन के मन में जितनी प्रसन्नता थी उतनी ही उद्विग्नता भी थी । उनके विचार से सम्पादन कौशल के निखार और सम्पादक के कर्तव्य को पूर्णता के लिये जिन कार्यो को वे पूरा करना चाहते थे वे अवशिष्ट ही रह गये थे । जैसे - - १. षट्खंडागम और टीका धवला के मूल पाठ का तीनों उपलब्ध ताड़प्रतियों से मिलान और पाठ भेदों का अंकन । २. कर्म सिद्धान्त सम्बन्धी दिगम्बर और श्वेताम्बर तथा वैदिक और बौद्ध साहित्य के साथ तुलनात्मक अध्ययन व पाश्चात्य दर्शन प्रणाली से उसका विवेचन | ३. सूत्रों और टीका का प्राकृत भाषा सम्बन्धी अध्ययन । डॉ. जैन आशावादी थे । उनका विश्वास था कि वर्तमान युग की बढ़ती हुई ज्ञानपिपासा तथा विशेष अध्ययन की ओर अभिरुचि व प्रोत्साहन को देखते हुये उक्त प्रवृत्तियों को हाथ लगाने में विलम्ब न होगा । अपूर्व प्रतिभा भट मेधा और ज्ञान की साधना में भक्तिपरक तल्लीनता से रत षट्खंडागम के पारगामी ऋषि को हमारी यही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी कि हम उनके विश्वास को खंडित न होने दें । षट्खंडागम की सोलह पुस्तकों में उन्होंने, प्रत्येक भाग के साथ भूमिका में, ग्रंथ सम्बन्धी ऐतिहासिक विवरण व विषय का परिचय भी दिया है और परिशिष्ट में दी है. शब्द सूची । एक मई १९५८ को कार्य समाप्त करते समय उनको लगा था कि प्रस्तावना -
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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