SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १४२ निबद्ध मंगलपने का हेतु होता नहीं है, इसलिये यह मंगल अनिबद्ध मंगल है। अथवा, यह निबद्ध मंगल भी हो सकता है। २. शंका - वेदनाखंड आदि खंडों में समाविष्ट (ग्रंथों) को महाकर्मप्रकृतिपाहुडपना कैसे प्राप्त हो सकता है ? समाधान - क्योंकि कृति आदि चौबीस अनुयोगद्वारों से सर्वथा पृथक्भूत महाकर्मप्रकृतिपाहुड की कोई सत्ता नहीं है । ३. शंका - इन अनुयोग द्वारों में कर्मप्रकृति पाहुडत्व मानलेने से तो बहुत से पाहुड मानने का प्रसंग आ जाता है ? - समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि यह बात कथंचित् अर्थात् एक दृष्टि से अभीष्ट है। ४. शंका - महापरिमाणवाली वेदना के उपसंहाररूप इस वेदनाखंड को वेदना अनुयोग द्वार कैसे माना जाय ? समाधान - ऐसा नहीं है, क्योंकि अवयवों से एकान्ततः पृथक्भूत अवयवी तो पाया नहीं जाता । और इससे यदि एक से अधिक वेदना मानने का प्रसंग आता है तो वेदना के बहुत्व से कोई अनिष्ट भी नहीं, क्योंकि वह बात इष्ट ही है। ५. शंका - भूतबलि को गौतम कैसे मान लिया जाय ? समाधान - भूतबलि को गौतम मानने का प्रयोजन ही क्या है ? ६. शंका - यदि भूतबलि को गौतम न माना जाय तो मंगल को निबद्धपना कैसे प्राप्त हो सकता है ? समाधान - क्योंकि भूतबलिके खंडग्रंथ के प्रति कर्तापने का अभाव है । कुछ दूसरे के द्वारा रचे गये ग्रंथधिकारों में से एक देश का पूर्व प्रकार से ही शब्दार्थ और संदर्भ का प्ररूपण करने वाला ग्रंथकर्ता नहीं हो सकता क्योंकि इससे तो अतिप्रसंग दोष अर्थात् एक ग्रंथ के अनेक कर्ता होने का प्रसंग आ जायगा । अथवा, दोनों का एक ही अभिप्राय होने से भूतबलि गौतम ही हैं । इस प्रकार यहां निबद्ध मंगलत्व भी सिद्ध हो जाता है । वेदना और वर्गणा खंडों की सीमाओं का निर्णय - यहां पर प्रथम शंका समाधान में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि वेदनाखंड के अंन्तर्गत पूरा महाकम्मपयडिपाहुड का विषय नहीं है - वह उस पाहुड का एक अवयव मात्र
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy