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________________ ११ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १. बारहवें अंग दृष्टिवाद के चतुर्थ भेद पूर्वगत का द्वितीय भेद आग्रायणीय पूर्व. १० १४. ११ १२ -चयनलब्धि आधुव अतीतसिब्-बद् १३ प्राणिधिकल्प अर्थोपम कल्पानिर्याण व्रतादिक अर्थ सर्वार्थ भौम धुव पूर्वान्त अपरान्त अनागत २० पाहुड उनमें चतुर्थपाहुड कर्मप्रकृति armor 9 vie152x48M लेश्यापरिणाम निबंधन उपक्रम | वेदना भवधारणीय | स्पर्श निधत्तानिधत्त | प्रकृति निकाचितानिसातासात |लेश्याकर्म प्रक्रम संक्रम पश्चिमस्कंध दीर्घहस्व पुद्रलात्म उदय अल्पबहुत्व कर्मस्थिति कर्म मोक्ष लेश्य काचित -भा-बंधन वेदना खंड ४ बंध बंधनीय । बंधक बंधविधान वर्गणा खंड ५ खुद्दाबंध खंड २ महाबंध खंड ६ इस वंशवृक्ष से स्पष्ट है कि आग्रयणीय पूर्व के चयनलब्धि अधिकार के चतुर्थ भेद कर्म प्रकृति पाहुड के चौबीस अनुयोगद्वारों से ही चार खंड निष्पन्न हुए हैं। इन्हीं के बंधन अनुयोग द्वार के एकभेद बंधविधान से जीवट्ठाण का बहुभाग और तीसरा खंड बंधस्वामित्वविचय किस प्रकार निकले यह आगे के वंश वृक्षों से स्प्षट हो जायगा।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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