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________________ जीवन-मूल्यों की दृष्टि से ऊँचा उठाती हैं । ये शिक्षाएँ मानव-मात्र के लिए स्वीकार्य और श्रेयस्कर हैं। भगवान् महावीर की शिक्षाओं में रत्नत्रय का भी प्रमुख स्थान है । रत्नत्रय इस प्रकार है : सम्यग्दर्शन-अपनी दृष्टि को निर्मल करो, सम्यग्ज्ञान-जीवन और जगत के सत्य को जानो और सम्यग्चारित्र—अपने आचार-व्यवहार को संतुलित और संयमित बनाये रखो । महावीर का यह रत्नत्रय जैन-धर्म की मूल धुरी है । यदि हम भगवान् की इन शिक्षाओं का आचमन करें तो हम समाज में रहते हुए न केवल सुख-शान्ति-पूर्वक जीवन-यापन कर सकते हैं, वरन् निर्वाण-लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं। मत और सम्प्रदाय : ____ जैन धर्म के मुख्य दो सम्प्रदाय हैं—श्वेताम्बर और दिगम्बर । कुछ विधि-विधानों एवं मान्यताओं में मतभेद होने के कारण ये दोनों परम्पराएँ विकसित हुईं, लेकिन मूल सिद्धान्तों की दृष्टि से इनमें कोई विशेष फर्क नहीं है । जो मतभेद हैं, वे इस प्रकार हैं-दिगम्बर सम्प्रदाय में मोक्ष-प्राप्ति के लिए नग्नता को अनिवार्य माना गया है, जबकि श्वेताम्बर इसे आवश्यक नहीं मानते और वे एक विशेष ढंग के श्वेत वस्त्र धारण करते हैं । दिगम्बर स्त्री-मुक्ति का निषेध करते हैं, जबकि श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में न केवल स्त्री-मुक्ति को स्वीकार किया गया है, बल्कि यह माना गया है कि जैन धर्म के उन्नीसवें तीर्थंकर मल्ली नारी ही थी । स्थानकवासी और तेरापंथ के नाम से प्रचलित दो सम्प्रदाय भी श्वेताम्बर जैन परम्परा के ही अंग हैं। इन दोनों परम्पराओं के अनुयायी मुँह पर मुखवस्त्रिका का उपयोग करते हैं। इनके अतिरिक्त जैन धर्म के समस्त अनुयायी मंदिर-मार्ग का अनुगमन करते हैं । वे जैन मंदिरों में तीर्थंकरों की मूर्तियों की पूजा करते हैं। वैसे दिगम्बर-परम्परा में भी बीसपंथी और तेरहपंथी दो मत हैं। तीर्थ एवं कला : तीर्थ जैन परम्परा के पवित्र स्थल हैं। तीर्थ का अर्थ है-भव-सागर को पार करना । अर्थात् जिसने इसे पार कर लिया हो उसे तीर्थंकर कहते हैं । जैन लोग तीर्थंकरों के पवित्र स्थानों की यात्रा और पूजा करते हैं और ऐसा करके अपने जन्म को सफल मानते हैं । पालीताना, सम्मेत शिखर, गिरनार, पावापुरी, आबू,श्रवणबेलगोला, शंखेश्वर, राणकपुर, जैसलमेर, नाकोड़ा आदि जैन धर्म के प्रमुख तीर्थ और पवित्र स्थान माने जाते हैं । पालीताना में मंदिरों का वैभव गोमटेश में स्थित भगवान् बाहुबली की गगन चूमती विशाल प्रतिमा, देलवाड़ा(आबू) के मंदिरों की बारीक कोरणी और राणकपुर के बेमिसाल जैन धर्म : एक परिचय/७४
SR No.002278
Book TitleJinsutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwe Nakoda Parshwanath Tirth
Publication Year2001
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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