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________________ पार्वापत्य कथानकों के आधार पर भ. पार्श्वनाथ के उपदेश __- डा. नन्द लाल जैन* जैनों की वर्तमान चौबीसी में भ. पार्श्वनाथ तेइसवें तीर्थंकर हैं। इन्होंने काशी में विशाखा नक्षत्र में जन्म लिया और इसी नक्षत्र में सम्मेदाचल से निर्वाण पाया। इनका जीवन चरित्र कल्प सूत्र चउपन्न महापुरिस चरिउ, त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित, महापुराण और पार्श्वपुराण आदि में पाया जाता है। एक तापस के पंचाग्नि के तप के समय सर्प की रक्षा और अपने तपस्या काल में कमठ का उपसर्ग इनके जीवन की प्रमुख घटनायें हैं। इन्होंने तीस वर्ष में दीक्षा ली, तेरासी दिनों में केवल ज्ञान पाया और सत्तर वर्ष तक धर्मोपदेश दिया। दोनों ही संप्रदायों में, महावीर चरित्र के विपर्यास में, उनका चरित्र प्राय: एक समान होते हुए भी, आधुनिक दृष्टि से पूर्ण नहीं लगता। भला, सौ वर्ष को दो-चार पृष्ठों में कैसे समाहित किया जा सकता है। यह तथ्य उनकी ऐतिहासिकता को भी विवादित होने का संकेत देता है। भ. पार्श्व ने अपने जीवन काल में “पुरुष श्रेष्ठ" "ऋषि" और "अर्हत" की ख्याति पाई। इससे उनकी लोकप्रियता तथा जनकल्याणी उपदेश कला का अनुमान लगता है। इसीलिये उनकी मूर्तियाँ भी आज सर्वाधिक हैं। उनके संघ के साधु स्थविर और निग्रंथ कहलाते थे। महावीर की तुलना में उनके चतुर्विध संघ में कम-से-कम एक प्रतिशत सदस्य अधिक थे। कल्पसूत्र के अनुसार, इनके संघ में १६००० साधु, ३८००० आर्यिकायें, ११४००० श्रावक एवं ३३२००० श्राविकायें थीं। यह संख्या त्रिलोक प्रज्ञप्ति में कुछ भिन्न है। फिर भी, औसतन साध्वी-साधु का अनुपात २.३७ और श्रावक-श्राविका का अनुपात लगभग ३.० आता है। साध्वी-साधु का अनुपात श्वेताम्बर संप्रदाय में तो अब भी यही लगता * जैन केन्द्र, रीवा
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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