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तीर्थंकर पार्श्वनाथ कुण्डलियों से लिपटे हैं और ऊपर सप्त फण अंकित है। यह बिना किसी सहारे की खडी है। यह गुप्तकालीन प्रतिमा सातवी सदी के
लगभग की प्रतीत होती है। (१३) मध्य प्रदेश की एक अतिविस्मयकारी पार्श्व प्रभु की कायोत्सर्ग प्रतिमा
कलकत्ता संग्रहालय में (नं० ए २५४१) विद्यमान है जिसपर कमठ उपसर्ग की पूर्ण जीवन्त गाथा उकेरी गई है, जिसमें सिंह, हाथी, बिच्छू, सर्प और भूतों बेतालों तथा अन्य दुष्टात्माओं को उपसर्ग और उपद्रव मचाते हुए कलापूर्ण ढंग से उकेरा गया हैं और प्रतिमा वटवृक्ष से . अलंकृत है। इसके पीछे एक विशाल सर्प (धरणेन्द्र) प्रभु की रक्षा करते हुए पीछे से चलता हुआ, सप्त फणों को बड़ी ही कुशलता और कलाकारी ढंग से उकेरा गया है। पार्श्व प्रभु की दायीं ओर यक्षणि पद्मावती धरणेन्द्र के सहायक रूप में हाथ में क्षत्र धारण किए हुए सर्पः के फणों पर खड़ी हुई उकेरी गई है। यह प्रतिमा छठी शताब्दी की
अनुपम प्रतिमा है। (१४) कहायूं (देवरिया) - गुप्त काल की पार्श्व प्रभु की प्रतिमाएं बहुत ही
कम मिलती हैं। सन १८६१-६२ में भारतीय पुरातत्व के प्रथम पुरोधा श्री कनिंघम ने यहां जांच पड़ताल करवाई और एक लेख में वहां के शैल स्तम्भ की चर्चा की जिसपर निम्न शब्दावली अंकित है ..... मद्र ने आदिकजेनऋषभ, शान्ति, नेमि महावीर व पार्श्व" जिससे ज्ञात होता है यहां इस शैल पर आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ और महावीर की कायोत्सर्ग मुद्रा में अंकित है तथा पार्श्व प्रभु की प्रतिमा पदमासन मुद्रा में उत्कीर्णित है। ऐसा पांच मूर्तियों वाला स्तम्भ बड़ा ही अनूठा और विस्मयकारी है। तथा गुप्त काल की महत्वपूर्ण कृति
(१५)बलदेव (मथुरा) से प्राप्त पार्श्व प्रभु की चार बैठी प्रतिमाएं मथुरा
संग्रहालय में विद्यमान हैं। पहली प्रतिमा सप्त फणों के नीचे चौकी पर विराजमान है जिनका सिंहासन सिंहो द्वारा उठाया हुआ है। दूसरी