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________________ ३४२ तीर्थंकर पार्श्वनाथ · "Each door way of Anant Gumpha is adorned with a pair of three hooded snakes on its arches. This is interesting because of. the possible association of Parsvanath with Kalinga. Mr. Marsall says this cave belongs to a date not much earlier than the first century B.C. - Sh. V.P. Shah (६) मथुरा (कंकाली टीले) के स्तूप सर्व प्रसिद्ध तो हैं पर बहुत प्राचीन भी हैं। बौद्धों का दावा है स्तूप निर्माण कला उन्होंने प्रारम्भ की पर मथुरा के देवनिर्मित स्तूप तो लगभग ८०० वर्ष ईसा पूर्व के निर्मित हैं। देवनिर्मित इसीलिए कहा जाता है कि ये हीरे, मोती, पन्नों आदि रत्न राशि से खचित थे। इसका कई बार जीर्णोद्धार और पुननिर्माण किया अलीगढ़ के टोडर साहू ने यहां ५१७ जिनस्तूपों का निर्माण कराया था। इस स्तूप के दांई ओर दो तीर्थंकर पृथ्वी पर बैठे हैं तथा बांई ओर भी दो तीर्थंकर बैठे हैं। बांयी ओर के अंतिम तीर्थंकर के पूर्व : सप्तफणावली वाले पार्श्वप्रभु विराजमान हैं। इस पर ९९ का वर्ष अंकित है जो वासुदेव के राज्यकाल की ओर इंगित करता है। . (७) उदयगिरि (विदिशा) में गुप्त सं. १०६ (४२५-२६ ए.डी.) में कुमार गुप्त प्रथम के समय की पार्श्वप्रभु की विशाल प्रतिमा है। पास ही एक खण्डित पार्श्व की प्रतिमा भी है। (८) ग्वारसपुर (विदिशा) जो माला देवी मंदिर से विख्यात है वहां की एक अतिसुन्दर पार्श्वप्रभु की प्रतिमा है। यह प्रतिमा अलवर्ट म्यूजियम लन्दन में है, यह मूर्ति धातकी वृक्ष के नीचे पद्मासन मुद्रा में विराजमान है जिस पर मेघकुमार को तूफानी उपसर्ग करते हुए दिखाया गया है। नागों के राजा सर्प की फणावली उनके सिर पर सुरक्षा हेतु उत्कीर्णित है। तथा सर्पिणी (पद्मावती) फणावली की सुरक्षा हेतु बड़ा विशाल छत्र लिए हए अंकित है। प्रतिमा के अगल बगल पुष्पमाला लिए विद्याधर आकाश में उड़ते हुए अंकित हैं। सब से ऊपर ढोल बजाता हुआ हाथ दिखाई देता है नीचे दो द्वारपाल धर्मचक्र लिए हुए अंकित हैं। इस प्रतिमा का निर्माण काल सातवीं सदी के आसपास ही लगता है।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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