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________________ ३३८ तीर्थंकर पार्श्वनाथ न करने दिया, अध्ययन, शोध खोज, प्रकाशन प्रसारण से हम कोसों दूर रहे। आज भी जब हम २१वी सदी के कगार पर पहुंच रहे हैं पर कोई ऐसी संस्था दिखाई नहीं देती है जो जैन प्राचीन ग्रंथों के विश्लेषण और शोध को, खोज को प्रकाशन के लिए तैयार हो। मैंने दिल्ली के जैन भण्डारों में स्थित प्राचीन पाण्डुलिपियों की संदर्भ-सूची तैयार की और अपना समस्त स्वास्थ्य और आखों की ज्योति भी इसीसे मद्धिम कर ली है, पर कोई इसकी उपयोगिता को नहीं जांच पा रहा है। जब की पूजा प्रतिष्ठा,पंच कल्याणक आदि विधि विधानों की प्रतिस्पर्धा में जैनियों का पैसा बहुलता से खर्च हो रहा है। जिन वाणी स्वरूप प्राचीन साहित्य की लोगों को जानकारी तक ही नहीं है प्रकाशन की बात तो बहुत दूर रही। यहां पार्श्व प्रभु की कुछ कला पूर्ण ऐतिहासिक प्रतिमाओं का संग्रह प्रस्तुत कर रहे हैं। भगवान् पार्श्वनाथ, जो “पुरुसदानिय” की उपाधि से विख्यात रहे, २४ . तीर्थंकरों में इनका जन्म ई.सं. ८७७ में वाराणसी के राजा पिता अश्वसेन तथा माता वामा देवी के घर हुआ था। वे प्रारम्भ से ही प्रखर बुद्धि और वैराग्यशील भावनाओं से ओत प्रोत थे। पुराणों में उनके पूर्व भवों का वर्णन करते लिखा है कि उन्का और कमठ के जीव का भव भवान्तरों का वैर चला करता था और उसके द्वारा प्रदत्त दुखों का सहनशीलता पूर्वक भोगते आ रहे जब प्रभु का जीव पार्श्वनाथ और उनके विरोधी कमठ बने तो कमठ द्वारा यज्ञ में लक्कड़ को जलाते समय मना किया क्योंकि उसपमें नाग नागिन बैठे थे। प्रभु ने जब उस लकड़ को फाड़ कर दिखाया तो दोनों जल चुके थे, मरणासन्न दोनों को प्रभ ने णमोकार मंत्र सुनाया जिस के प्रभाव से वे धरणेन्द्र और पदमावती बनकर प्रभु के संरक्षक बने और उनको घोर उपसर्ग से बचाया। इस पौराणिक गाथा को साहित्यकारों एवं कलाकारों ने प्रस्तर धातु रत्नादि में फणावली का रूप दे दिया। यही फणावली ही पार्श्व प्रभु का लांछन (चिन्ह) बन गया जिससे कालान्तर में भ. पार्श्वनाथ की पहिचान फणावली से ही होने लगी। पूर्व प्राचीन काल में कहीं कहीं ध्वनि सामान्य के कारण सातवें तीर्थंकर सुपार्श्व की प्रतिमा पर भी फणावली अंकित हुई मिली है जिसे हम साधारण सी भूल समझते हैं।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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