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________________ भगवान् पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता - वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में ३३३ __ लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म बनारस (वाराणसी) नगरी में भ. महावीर के लगभग २५० वर्ष पूर्व हुआ था। प्रस्तुत शोध पत्र में कुछ वनस्पतियों के आधार पर वैज्ञानिक तथ्यों को उद्धृत किया गया है। इन वृक्षों से भ. पार्श्वनाथ के जीवन का अटूट संबंध रहा है। कुछ प्रमाण उनसे संबंधित क्षेत्रों को लेकर भी प्रस्तुत किये गये हैं। संवर देव का उपसर्ग पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान् को दीक्षा लिये हुये चार माह व्यतीत हो गये थे। जिन वन में दीक्षा ली थी उसी वन में वह देवेदारु वृक्ष के नीचे विराजमान हुये थे। 'देवदारु' के वृक्ष उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व एवं मध्य हिमालय एवं उसके तलहटी के क्षेत्रों में बहुतायत से पाये जाते हैं। यदि लगभग ३००० वर्ष पूर्व की जलवायु पर दृष्टिपात करें एवं दवदारु' एवं अन्य नग्नबीजा वर्ग के वृक्षों के इतिहास को अवलोकित करें तो ज्ञात होता है कि यह वृक्ष उस समय उ.प्र. एवं बिहार के हिमालय से लगे हुये मैदानी भागों में भी उत्पन्न होते थे। अत: भगवान् ने तप हेतु हिमालय क्षेत्र से लगा हुआ ही ऐसा कोई स्थान चुना होगा जहां पर्वत श्रेणियां भी रही होंगी एवं देवदारु वृक्ष भी। . . देवदारु' के वृक्ष का लेटिन नाम 'Cedrus deodar' है। यह विशाल वृक्ष सैकड़ों फीट ऊंचे होते हैं। वृक्ष का आकार शंकु की तरह का होता है। इस वृक्ष की पत्तियां पतली, नुकीली एवं सींक के आकार की होती हैं। इस वृक्ष-की लकड़ी अत्यंत मजबूत एवं फर्नीचर इत्यादि बनाने में प्रयुक्त होती है। इस वृक्ष से 'देवदारु' तेल' (Cedarwood Oil) भी प्राप्त किया जाता है जो कि अनेक प्रकार की सामग्री बनाने में प्रयुक्त होता है। ___संवर देव द्वारा किये गये उपसर्ग में यह भी वर्णन आता है कि उसने प्रचन्ड वेग से पवन को प्रवाहित किया। इसका वेग इतना प्रबल था कि वृक्ष एवं पर्वत भी उड़ने लगे। अत: यहां भी प्रतीत होता है कि वह स्थान कोई पर्वतीय स्थल रहा होगा तभी पर्वत उड़ने की बात कही गई है। वैसे अगर
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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