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________________ ३१८ तीर्थंकर पार्श्वनाथ ___— उदयपुर जिले में स्थित अणिन्दा पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र है यहाँ स्थित श्याम वर्ण युक्त यक्ष-यक्षिणी सहित पद्मासन प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथ की है जो संवत् १००० में निर्मित मानी जाती है। ऋषभदेव से लगभग ६० कि.मी. दूर भौंदर नामक ग्राम की पहाड़ी पर नागफणी अतिशय क्षेत्र है। मंदिर में धरणेन्द्र पर विराजमान पार्श्वनाथ की लघुप्रतिमा है। भगवान् के शीर्ष पर सप्त फण हैं जिन में ३ खण्डित हैं। इस मूर्ति के चमत्कार से प्रार्थना करने पर गुमे हुए पशु भी मिल जाते हैं। अन्देश्वर पार्श्वनाथ बांसवाड़ा जिले में स्थित अतिशय क्षेत्र है। भूगर्भ से प्राप्त, सप्तफणी यह मूर्ति एक शिलाफलक में है जिसके शीर्ष पर तीन छत्र एवं उसके ऊपर दुंदुभीवादक हैं। मन्दिर की प्रतिष्ठा १९९२ संवत में हुई थी। जैसलमेर में सेठ जगधर द्वारा वि.सं. १२६३ में मूलनायक चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा लोद्रवा से लाकर यहाँ प्रतिष्ठित की गई। . लोद्रवा पाटन अतिशय क्षेत्र जैसलमेर से १५ कि.मी. दूर है यहाँ सहस्त्रफणी पार्श्वनाथ की कसोटी पाषाण की भव्य चमत्कारी प्रतिमा के दर्शन से अपार शान्ति मिलती है। . . , श्वेताम्बर जैन तीर्थ नाकोड़ा पार्श्वनाथ में सं. १४२९ की मूर्ति प्रतिष्ठित है। बिहार राजगृही में रत्नागिरि, उदयगिरि पर्वत पर भ. पार्श्वनाथ की प्राचीन प्रतिमायें हैं । गया से ६७ कि.मी. दूर कुलुहापहाड़ पर तालाब के निकट शिखरबंद जिनालय में भगवान् पार्श्वनाथ की ईसा की २ या ३ शताब्दी की प्रतिमा विराजमान है। यहाँ कोलेश्वरी देवी मंदिर के आगे प्राकृतिक गुफा में ९ फण वाली श्यामवर्ण की पार्श्वनाथ की मूर्ति है जो संभवत: १२वीं शताब्दी प्राचीन है। भागलपुर में भ. पार्श्वनाथ की बड़ी मनोज्ञ अतिशयकारी प्रतिमा है जो संभवत: १९२९ संवत के आसपास प्रतिष्ठित है। सम्मेद शिखर
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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