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________________ ३०१ पाषाण प्रतिमाओं में रूपायित तीर्थकर पार्श्वनाथ महिष और सिंह रूप में ही भगवान् पर झपटते अंकित किया गया है। धरणेन्द्र-पद्मावती नीचे चरण-सान्निध्य में सौम्य भाव से बैठे भी अंकित हैं तथा फणावली और देवी के हाथ में छत्र की संयोजना भी यथावत है। इसी प्रकार की संयोजना वाली, मध्यकाल की एक छोटी प्रतिमा मैंने कलकत्ते के इण्डियन म्यूजियम में भी क्र. जे. ८४२ पर देखी थी। उसकी विषय-संयोजना भी लगभग इसी प्रकार की है। यह मूर्ति मध्यप्रदेश में मिली थी। मध्यभारत में ऐसी कुछ अन्य प्रतिमाएं भी हो सकती हैं, पर इस दृष्टि से सर्वेक्षण करने का अवसर मुझे नहीं मिला है। सहज ही जो चित्र यह आलेख लिखते समय हाथ में आ गये उन्हीं .... का उल्लेख करके मैंने अपनी बात कह दी है। शोधक विद्वानों को ऐसी अन्य मूर्तियों की तलाश करके प्रकाशित करना चाहिये। कुछ अन्य सुन्दर प्रतिमाएं .: यह आलेख समाप्त करने के पूर्व कुछ अन्य सुन्दर, प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण मूर्तियां भी मेरे ध्यान में आ रही हैं जिनका उल्लेख मुझे आवश्यक लगता है। बीजापुर की सहस्रफण पार्श्व-प्रतिमा उन सब में प्रथम उल्लेखनीय है.। पहले मेरी धारणा थी कि सौ से अधिक फण होंगे इसलिये उसे सहस्रदल कमल की तरह, सहस्रफणी पार्श्वनाथ कह दिया होगा। परन्तु जब मैंने उस प्रसिद्ध मूर्ति का दर्शन किया तो मैंने पाया कि उस पर सचमुच सहस्र फणों की. फंणावली कलाकार ने बड़े कौशल के साथ गढ़ी है। मैंने फण गिने भी। मध्य काल में निर्मित काले पाषाण की यह प्रतिमा अपनी फ़ण-सज्जा के लिये अद्वितीय ही है। यहां नवीन जिनालय का निर्माण हो चुका है और क्षेत्र के विकास की दिशा में अन्य कार्य किये जा रहे हैं। . बीजापुर के पास ही बाबानगर में पार्श्वनाथ भगवान् की एक छोटी सी, अदभुत आकर्षण वाली मूर्ति का दर्शन मुझे मिला। कच्चे पन्ना की, जिसे मरकत मणि भी कहा जाता है, यह एक अति सुन्दर-सुघढ़-सुहानी
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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