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शिल्पकला एवं स्थापत्य के विविध आयामों में भगवान् पार्श्वनाथ २४५ चरणों में अपने श्रद्धासुमन बिखेरते हैं, अपने बच्चों के नाम पार्श्वनाथ के नाम पर रखते हैं। उन्हीं विश्वंद्य महापुरुष की निर्वाण भूमि का नाम भी “पार्श्वनाथ हिल" या "पार्श्वनाथ पहाड़ी" के नाम से प्रसिद्ध है, जो जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण वंदनीय तीर्थ है। यही कारण है कि सम्पूर्ण भारतवर्ष मे वर्तमान में भी जैन धर्म की दोनों प्रमुख शाखाओं, दिगम्बर एवं श्वेताम्बर में, सर्वाधिक मंदिर भगवान् पार्श्वनाथ के हैं। . पार्श्वनाथ के प्रभाव का सबसे महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक प्रमाण उस समय देखने मिलता है, जब रामचरित मानस के रचयिता महाकवि तुलसीदास ने अपनी अमरजयी काव्य रचना सम्पूर्ण करने के पश्चात् उक्त कृति को भगवान् पार्श्वनाथ को समर्पित करते हुए उनकी भक्ति में छन्द लिखे हैं, जो कि वर्तमान के कट्टरपंथी चिंतकों के लिये एक अनुकरणीय दिशा बोधक प्रेरणा स्त्रोत हैं।
- भगवान् पार्श्वनाथ की सर्वाधिक लोकमान्यता होने के फलस्वरूप शिल्प कला एवं स्थापत्य के विविध सन्दर्भो एवं आयामों में विभिन्न शिल्पकला शैली में अत्यन्त विकसित स्वरूप देखने को मिलता है। दक्षिण भारत.की बादामी सभ्यता एवं राजशाही के अंचल बीजापुर, गोलकुंडा एवं जैन धर्मावलम्बी राजाओं के शासन के केन्द्रबिन्दु मैसूर में होयसल, चोल एवं अन्य कला शिल्पों में तीर्थंकर पार्श्वनाथ स्वामी की खड़गासन प्रतिमाओं का समावेश है। इसी श्रृंखला में पश्चिम एवं उत्तर भारत के सुप्रसिद्ध दिगम्बर एवं श्वेताम्बर मंदिरों में, शंखेश्वर पार्श्वनाथ, विघ्नहर पार्श्वनाथ, चिंतामणी पार्श्वनाथ की फणवाली प्रतिमाएं शिल्पकला की बेजोड़ कृति हैं। ग्वालियर (म.प्र.) के सुप्रसिद्ध किले में स्थित गोपाचल पर्वत पर विराजमान भगवान पार्श्वनाथ की ४२ फुट ऊंची पदमासन प्रतिमा विश्व की एकमात्र इतनी बड़ी पद्मासन प्रतिमा है, जो शिल्प कला एवं स्थापत्य के सर्वोच्च शिखर को छूती है।