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________________ २१७ प्रथमानुयोग में तीर्थंकर पार्श्वनाथ १३. वादिराज सूरी ने भगवान् के पिता का नाम विश्वसेन (९/६५) और * माता ब्रह्मदत्ता (९/७८) कहा है; किंतु कुल वंश का उल्लेख नहीं है। उत्तरपुराण में राजा-रानी का नाम विश्वसेन और ब्रह्मा देवी (७३/७४) लिखा है, तथा उनका वंश उग्र (७३/९५) और गोत्र काश्यप (७३/७४) बतलाया है। सकलकीर्ति, चंद्रकीर्ति और भूधरदास ने क़ाश्यप गोत्र और वंश इक्ष्वाक् लिखा है। राजा का नाम विश्वसेन बतलाया है। भूधरदास ने उन्हें अश्वसेन बतलाया है (५/६०)। हरिवंशपुराण में भी यही नाम है (पृ. ५६७)। सकलकीर्ति, रानी का नाम ब्राह्मी (१०/४१) और चन्द्रकीर्ति, ब्रह्मा (८/५१) बतलाते हैं। हरिवशपुराण में उनका नाम वर्मा है (पृ. ५६७)। भूधरदास उन्हें वामा देवी लिखते है। (५/७१) १४. पार्वाभ्युदय काव्य में उनका उग्र वंश लिखा है (श्लो. २) किंतु आदिपुराण (अ. १६) में आदिवंश इक्ष्वाक् से ही शेष वंशों की उत्पत्ति लिखी है। .. १५. वादिराज ने भगवान् की गर्भ तिथि नहीं दी है। शेष सभी ग्रंथों में वैशाख कृष्ण द्वितीया, विशाखा नक्षत्र (निशात्यये) लिखी है। १६. वादिराज़ सूरि जन्मादि किसी भी तिथि का उल्लेख नहीं करते हैं, किंतु - .और सभी ग्रन्थ उनका उल्लेख करते हैं। . १७. वादिराज सूरि के ग्रंथ में भगवान् ने आठ वर्ष की अवस्था में अणुव्रत . . धारण किये थे' उल्लेख नहीं है। ऐसा उत्तरपुराण और हरिवंशपुराण · में भी नहीं है। १८. वादिराज ने भगवान् के पिता द्वारा उनसे विवाह करने के लिये ... अनुरोध किया था, उसका उल्लेख महीपाल साधु से मिलने के बाद किया है और उससे ही उन्हें वैराग्य की प्राप्ति होते दिखाया है (१९/१-१४) परन्तु उसमें अयोध्या के राजा जयसेन द्वारा भेंट भेजने .. का उल्लेख नहीं है। उत्तर पुराण में (७३/१२०) जयसेन का
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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