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तीर्थंकर पार्श्वनाथ ९. वादिराज के ग्रंथ में वज्रनाभि चक्रवर्ती को सूखा वृक्ष देखकर विरक्त
होते और क्षेमंकर मुनि के पास जाते लिखा है (८/७२-७३) किन्तु उत्तर पुराण (७३-३४), सकलकीर्ति (५/३), चंद्रकीर्ति (५/२-४)
और भूधर दास (३/७४) ने उनको क्षेमंकर मुनि का उपदेश
सुनकर विरक्त होते बतलाया है। १०. आगे सकलकीर्ति (५/९४), चंद्रकीर्ति (५/८८-९०) और भूधरदास
(३/१०७) ने वज्रनाभि मुनि को वन में रहते हुए कुरंग भील द्वारा उपसर्गीकृत होते लिखा है। किन्तु पार्श्वचरित (८/८०) में उनके स्थान पर विपुलाचल पर्वत बताया है और उत्तरपुराण में (७३/३८)
वन और पर्वत किसी का भी उल्लेख नहीं है। . . ११. वादिराज सूरि राजा आनन्द को जिनयज्ञ करते और मुनि आगमन :
हआ बतलाते हैं । (९/१-३)। उन्होंने मंत्री की प्रेरणा का उल्लेख नहीं किया है और न मुनिवर का नाम बतलाया है। किंतु उत्तर पुराण (७३/४४-४५), सकलकीर्ति (७/३९-४१), चन्द्रकीर्ति (६/४५-५०) और भूधरदास (४/१८-२४) ने स्वामीहित मंत्री की प्रेरणा से आनन्द राजा को जिनयज्ञ रचते और विपुलमती मुनिराज को आते लिखा है। किन्तु उत्तर पुराण (७३/५८-६०), सकलकीर्ति और भूधरदास (४/६०) ने राजा आनन्द के समय से सूर्य पूजा का प्रचार हुआ लिखा है। किंतु वादिराज (सं ९) और चंद्रकीर्ति के चरित
(६/८१-८८) में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। १२. वादिराज ने राजा आनन्द को सफेद बाल देखकर निधिगुप्त मुनिराज
के समीप दीक्षा लेते लिखा है (९/३४-३८) किंतु चंद्रकीर्ति ने यद्यपि सफेद बाल की बात लिखी है किन्तु मुनि का नाम सागरदत्त लिखा है ( ६/१३-१२४)। वहीं सकलकीर्ति ने मुनि का नाम समुद्रदत्त बतलाया है (८/२६) जो उत्तरपुराण में भी है (७३/६१)। भूधरदास ने सागरदत्त लिखा है।