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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
आपके दर्शन करते ही जन्तु अपना जातिगत विरोध छोड़ देते हैं। आपका दर्शन देव और मनुष्य दोनों के मन को मोहित करता है तथा पाप और संसार की बाधाओं को हरने वाला है । हैं त्रिभुवन के मुकुटमणि अर्थात् तीनों लोकों में सर्वोत्कृष्ट रूपचन्द आपकी महिमा का क्या वर्णन करे, वह तो वर्णनातीत है ।
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ज्ञानपुंज” सुरपति पूज्यपाद (इन्द्रों द्वारा पूजित चरण वाले), जन्म जलधितारन तरंड (जन्म रूपी समुद्र को पार करने में नौका के समान), परमाद्भुत सुख मणि करंड (परम अद्भुत सुखरूपी मणि की मंजुषा ), निजानन्द दायक, दुखतिमिर नाशक दिनेश, नष्टमार ( कामनाशक ) ३०, सामरिया” (श्यामवर्णी), मनमध - मतंग - हरि (कामदेवरूपी हाथी के लिए सिंह), बिन स्नान नित्त निर्मल, अंतर - बाहिर सहज पवित्र, स्वयंबुद्ध, जगरक्षक, बिनकारन बन्धु, गुणसागर, अगम अपार, अशरण-आधार, अतिशय भंडार, शिव संपत्तिकरन तारनतरन, भवि दधिपार उतारन हार, त्रिभुवणधणीं, शिवदेन हार, ज्ञानवंत" इत्यादि विशेषण भक्तकवियों के स्फुट पद्यों में मिलते हैं जिनसे भगवान् पार्श्वनाथ के बहुमुखी व्यक्तित्व एवं कृतित्व का पता चलता है । वास्तव में उनका पूरा चरित विशेषणों से आपूरित है संसार का ऐसा कोई विशेषण - विभूषण नहीं है जो उनमें शोभायमान नहीं होता हो ।
भ. पार्श्वनाथ की महिमा
भ. पार्श्वनाथ के नाम की महिमा अवर्णनीय है । उनके नाम जाप से उपसर्ग हरण, विषहरण एवं नागों का दमन हो जाता है। नागयोनि के देव सहायक होते हैं, विषपान अमृत में बदल जाता है। आपके नाम धारण से पाप-पंक धुल जाते हैं। यहाँ तक कि पारसमणि से जीव- लोहा कंचन सम बन जाता है। विषापहभस्त्रोत्र में अचलकीर्ति कहते हैं:
उपसर्ग-हरन तुम नाग अमोल, मंत्र जंत्र तुमहिं मन फोल ।