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________________ तीर्थकर पार्श्वनाथ १९८ आ गया और उसने अपने फण का छत्र आपके ऊपर लगा दिया। तब आपने कर्मों के समूह को हरने वाले शुक्ल ध्यान को धारण किया। तत्काल केवलज्ञान का प्रकाश हो उठा और कमठ निराश होकर थक गया। कवि जगतराम का कथन है कि फिर वह असुर आपके श्रेष्ठ चरणों पर दृष्टि आरोपित करता हुआ दास की तरह झुक गया। अनन्तर समवशरण में दिव्य ध्वनि के माध्यम से जीवों का परमउपकार करते हुए अन्त में पार्श्व प्रभु ने सम्मेद शिखर से निर्वाण प्राप्त किया। यह तिथि मोक्ष सप्तमी के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान् पार्श्वनाथ के विशेषण ___ भगवान् पार्श्वनाथ के अनेक विशेषण भक्त कवियों ने उल्लिखित किये हैं जो उनकी चरित्रिक विशेषताओं. को प्रकट करते हैं। जैसे -पतितपावन, पतित उद्धारक, तीन लोकपति२२, आनन्दकंद (आनन्द के जन्मदाता), पूनम-चन्द्र (पूणिमा के चंद्र) करम फंद हर्ता (कर्मों के फन्दे को हरनेवाले). भ्रम-निकंद (भ्रम को जड़मूल से नष्ट करने वाले), दुखहर्ता (दुखों का हरन करने वाले), सुख पूरक महाचैन दाता (सुख पूरित कर महाशान्ति देने वाले)२३, कल्पवृक्ष, कामधेनु, दिव्य चन्तामणि', तारनतरन२५, कमठ महामद भंजन। (कमठ के महामद को नष्ट करने वाले), भविक रंजन (भव्य जीवों को आनन्दित करने वाले), पाप तमोपह भुवनप्रकाशक, (पाप रूपी अंधकार से ढके संसार को प्रकाशित करने वाले), भूविज-दिविज पति-दनुज-दिनेसर सेवित, नरेन्द्र, देवेन्द्र, दनुज (दानव) और सूर्य से सेवित, वामानन्दन (वामा देवी के पुत्र) । बनारसी दास जी ने उनकी विशेषताओं का वर्णन करते हुए लिखा है कि करम-भरम जग तिमिर-हरन-खग, उरग-लखन-पग-शिव-मग-दरसी। निरखत नयन भविक जल बरखंत, हरखत अमित भविक जन सरसी।।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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