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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ भक्ति गंगा - के आलोक में भगवान् पार्श्वनाथ १९७ आच्छादित कर उपसर्ग निवारण किया उपसर्ग की स्थिति में पार्श्व प्रभु का ध्यान अविचलित रहा। कवि रूपचन्द ने लिखा है कि - (क) कमठ-कृत उपसर्ग सर्गनि, अचलित योग विचार।। फणिप पद्मावती पूजित पाद पदम् दयालु । (ख) खुशाल चन्द काला ने लिखा है कि कमठ मान भंजन करि प्रभुजी, राख्या मन अतिभारी हो१९ (ग) कवि जगतराम ने लिखा है कि : . हो पारसं जिन भविकंज बोधदिन. उपसर्ग कौं दलन असरन कौं सरन । कमठ — कोप करि रजषेषी तुम पर, तेरी कहं छाया हु को लैसह न अवरन, जै जै हो।। अतिघन बरसायो मूसलसी धार छायौ विकट गरज बीज़ झंझाबात को धरन। प्रेत वज्र कों पठायौ गरे रूंडमाल धायौ • षरे के समुष आगे देषत भयकरन, जै जै हो।। तब शेषनाग आयौ फंण को सुछत्र छायो . तुम ध्यान उर लायौ करम गन हरन। गयान परकास भयौ कमठ निरास थयौ जगतराम दास नयौ निषि वर चरण, जै जै हो।२० .अर्थात् हे पार्श्व प्रभु, भव्यजन रूपी कमलों को खिलाने के लिए तुम सूर्य के समान हो। तुम उपसर्गों को नष्ट करते और अशरण को शरण देते हो। कमठ ने क्रोध करके आप के ऊपर जो धूल फेंकी थी, उससे आपके शरीर की छाया का लेश भी अवर्ण न हो सका। उसने बादल लाकर मूसलाधार वर्षा की, साथ ही भयंकर गर्जन, बिजली की चमक और तूफानी हवा से आफत बरसा कर दी। उसने वज्र नाम के प्रेत को भेजा जो अपने गले में खण्डमाला धारण कर आपकी तरफ दौड़ा, किन्तु उसके सम्मुख पहुँचते ही भयभीत हो उठा, हे प्रभु आपकी जय हो। उसी समय शेषनाग
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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