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अपभ्रंश भाषा के पार्श्वनाथचरित - एक विमर्श कमठ के जीव ब्राह्मण कुलोत्पन्न मिथ्या तापसी मिथ्या तप से अलग होने की सलाह, तपस्या में लीन पार्श्वकुमार पर असुरेन्द्र कमठ के जीव द्वारा उपसर्ग, नागराज द्वारा पार्श्वनाथ की रक्षा, केवलज्ञान उत्पत्ति, असुरेन्द्र का पार्श्वनाथ की शरण में जाना और समवशरण का विवेचन किया गया है। इस ग्रन्थ में जैन सिद्धान्तों का विस्तृत विवेचन हुआ है। कावयत्व की दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है। किन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि यह सम्वत् शक है या विक्रम। दक्षिण भारत में प्राय: शक सम्वत् का ही प्रयोग होता है। अत: इसे शक सम्वत ही मानना चाहिए। इस प्रकार ग्रन्थ का रचना काल सं. ९९९ (१०७७) ई. ठहरता है। जबकि ग्रन्थकार स्वयं सं. ९९९ का उल्लेख करते हैं। अत: यह निर्विवाद सिद्ध है कि यह पासणाहचरिउ, वादिराज सूरि के पार्श्वनाथ चरित्र से पश्चादवर्ती हैं
२. पासणाहचरिउ – देवदत्त
अपभ्रंश के चरित काव्यों में डा. देवेन्द्र कुमार शास्त्री ने देवदत्त के 'पासणाह चरिउ (पार्श्वनाथ चरित) का. उल्लेख किया है। इनकी कृर्ति और इनका. अपना परिचय उपलब्ध नहीं होता है। जम्बूं स्वामी के रचयिता महाकवि वीर के पिता का नाम देवदत्त था। देवदत्त अपभ्रंश के अच्छे विद्वान थे। महाकवि वीर ने अपभ्रंश साहित्य में अपने को प्रथम, पुष्पदन्त को द्वितीय तथा अपने पिता को देवदत्त को तृतीय स्थान प्रदान किया है संभव है यही देवदत्त पासणाहचरिउ के रचयिता हों।
३. पासणाहचरिउ – विवुध श्रीधर
- पासणाहचरिउ अपभ्रंश में लिखित पौराणिक महाकाव्य है। इसकी कथावस्तु १२ संघियों में विभक्त है। ग्रन्थ २५०० पद्य प्रमाण हैं। इसमें तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ का चरित निबद्ध है। काव्यत्व की दृष्टि से यह उत्तम कोटि की रचना है। नदियों, नगरों आदि का बड़ा ही आकर्षक वर्णन किया गया है। इसमें विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है तथा भाषा आलंकारिक है। कथावस्तु परम्परा प्राप्त है। अपभ्रंश एवं संस्कृत-साहित्य