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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
१. पासणाहचरिउ – पद्मकीर्ति
अपभ्रंश भाषा में लिखित यह पासणाहचरिउ (पार्श्वनाथचरित) १८ सन्धियों में विभक्त है। इसमें विविध छन्दों में लिखित ३१० कड़बक तथा लगभग ३३२३ पंक्तियां हैं। ग्रन्थ में कवि ने परम्परा प्राप्त कथानक को ही अपनाया है। इसकी प्रथम सन्धि में मगधदेशस्थ पोदनपुर नगर के राजमन्त्री विश्वभूति के कमठ और मरुभूति नामक पुत्रों, कमळं द्वारा मरुभूति की पत्नी के साथ अनुचित व्यवहार, राजा द्वारा कमठ का नगर से निर्वासन, मरुभूति का कमठ द्वारा मार डालना तथा मरणानन्तर मरुभूति का अषनिघोष (वज्रघोष) नामक हाथी होने का वर्णन कियां गया है। द्वितीय सन्धि में राजा अरविन्द को मुनि दीक्षा धारण करने का वर्णन है। तृतीय सन्धि में राजा की तपश्चर्या, विहार तथा अषनिघोष 'हाथी को उपदेश देना आदि वर्णित किया गया है। चतुर्थ सन्धि में अषनिघोष को कुक्कट सर्प द्वारा काटा जाना मरणानन्तर स्वर्ग, प्राप्ति और कुक्कट सर्प को नरक प्राप्ति होने का चित्रण किया गया है। पंचम संधि में मरुभूति के जीव का स्वर्ग से चयकर अपर विदेह में राजा होना, कमठ के जीव का नरक से निकलकर भील होना तथा भील द्वारा तपस्या में लीन राजा को मार दिये जाने का वर्णन है। राजा का जीव मरणानन्तर ग्रेवेयक में और भील मरकर नरक जाता है। षष्ट सन्धि में मरुभूति का जीव ग्रेवेयक से चयकर विदेह क्षेत्र के विजयदेश का राजा कनकप्रभ होना वर्णित है। सप्तम सन्धि में कनकप्रभ राजा द्वारा धारण की गई मुनिदीक्षा की प्रशंसा, उनका ध्यानास्थ होना, नरक से चयकर सिंह पर्याय में उत्पन्न कमठ के जीव द्वारा 'कनकप्रभ पर आक्रमण, फलस्वरूप कनकप्रभ का मरण आदि का वर्णन किया गया है।
यहां तंक तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पूर्व भवों का वर्णन किया गया है। अष्टम संधि से पार्श्वनाथ का वर्णन प्रारंभ होता है।
अष्टम से अष्टादश सन्धि तक हयसेन और वामा के गर्भ से पार्श्वकुमार की उत्पत्ति, यवनराज का छोड़ा जाना, कुमार पार्श्व द्वारा