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________________ १६० तीर्थंकर पार्श्वनाथ करते हुए जब उनकी आयु मात्र एक माह शेष रह गई थी ३६ मुनियों के साथ सम्मेद शिखर पर प्रतिमायोग धारण कर विराजमान हो गये और वहीं पर १०० वर्ष की आयु में उक्त मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था । पद्मकीर्ति के अलावा पुष्पदन्त और रइधु ने तिलोयपण्णत्ति और उत्तरपुराण की तरह अपने ग्रन्थों में निर्वाण प्राप्त करने की तिथि श्रावण शुक्ला सप्तमी और विशाखा नक्षत्र का निर्देश किया है । अन्तर केवल इतना है कि तिलोयपण्णत्ति में उन्हें प्रदोषकाल में और उत्तरपुराण में प्रात:काल में मोक्ष होने का उल्लेख उपलब्ध है, जबकि अन्य आलोच्य ग्रन्थों में उक्त काल का कथन नहीं हुआ है। जनसामान्य आज भी विहार में स्थित भगवान् पार्श्वनाथ के निर्वाण स्थल सम्मेद शिखर को पारसनाथ हिल के नाम से जानते हैं। भगवान् पार्श्वनाथ का तीर्थ २५० वर्षों और यतिवृषभ के अनुसार २७८ वर्षों तक प्रवर्तित रहा । ९२ उपर्युक्त गहन विवेचन से निम्नांकित बिन्दु प्रकट होते हैं : १. भगवान् पार्श्वनाथ के जीवन में घटित महत्वपूर्ण घटनाऐं उन्हें ऐतिहासिक महापुरुष सिद्ध करने में स्वतः प्रमाण हैं। २. भगवान् पार्श्वनाथ के जीवन में उत्तरोत्तर आत्म विकास की परम्परा उपलब्ध है। इसके विपरीत कमठ का जीवन अशुभ क्रियाजन्म: उत्तरोत्तर पतन का प्रतीक है । अतः सम्यक्त्व और आत्मालोचन ही आत्मोत्थान का साधन है । ३. विक्रम संवत् १०वी शताब्दी से १६ वी शताब्दी तक के जैन आचार्यों को भगवान् पार्श्वनाथ का आकर्षक व्यक्तित्व बहुत भाया । यही कारण है कि अपभ्रंश भाषा में भगवान् पार्श्वनाथ विषयक स्वतंत्र महाकाव्यों और खण्डकाव्यों की रचना कर आचार्यों ने उनके प्रति अपनी गाढ़ श्रद्धा प्रकट की है। इन्हें भगवान् पार्श्वनाथ के प्रति अर्चना और प्रेमसमर्पण का प्रतीक कहा जा सकता है। ४. पार्श्व विषयक उपर्युक्त साहित्य के तुलनात्मक आलोडन से ज्ञात होता है कि अपभ्रंश भाषा में निबद्ध पार्श्व विषयक साहित्य का आधार
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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